कविता

अच्छा लगता है

सर्द सर्दियों की रातों में रजाई में दुबकना अच्छा लगा हैं

वो तेरा अपनी बाहों में मुझे समेटना अच्छा लगता है !

गुनगुनाती सी किसी सर्द सुबह में मुझको जागाते हुए कहना

सुनती हो थोड़ा सा चाय बना देना — सुनना अच्छा लगता है !

मेरे बनाए सादा से खाने को रोज बड़े चाव से खाना

और कहना तुम्हारे हाथों में बड़ा स्वाद — अच्छा लगता है !

दिन भर थक-हार कर दफ्तर से आना और

भोली -सी हंसी के साथ घर में दाखिल होना — अच्छा लगता है !

घर गृहस्थी के कामों से जब थकान -सी महसूस होती है

तुम्हारा ये कहना -थोडा आराम कर लिया करो — अच्छा लगता है !

कड़कती ठंड की सुबह में अपने गर्म हाथों में

मेरे ठंडे हाथों को लेकर गर्म करना – अच्छा लगता है !

बड़ी बड़ी खुशियों की क्या बात है कहूं 

तुम्हारा मेरी छोटी -छोटी खुशियां की परवाह करना — अच्छा लगता है !

खुबसूरत न हो कर भी तेरे आंखों में

खुद को खुबसूरत दिखना — अच्छा लगता है !

तुम्हारे जिंदगी में मेरी कितनी अहमियत 

तुम्हारा यह हर बात में जताना — अच्छा लगता है !

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P