गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

साथ समय के चलते गम है।

इस दुनिया में सब कुछ कम है।

धारा के विपरीत बहो तो,

आंसू हैं और आंखें नम हैं।

शर्तों पर शर्तें लगती हैं,

सम्बन्धों में क्या कुछ सम है।

लोकतंत्र पनपे तो कैसे,

जन स्वप्नों के सौदागर हम हैं।

समय शिला पर शब्द गूंजते,

बातें तो उनकी बेदम हैं।

महलों में भीतर उजियारा,

बाहर तो फैला बस तम है।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890