सामाजिक

जीवन में संस्कारों का होना आवश्यक

जीवन में आज संस्कार, सहनषीलता व आत्मीयता इन सभी आत्मगुणों में निरन्तर कमी आ रही है। व्यक्ति अन्दर-ही-अन्दर से टूट रहा है, परिवार बिखर रहे हैं, प्यार एवं स्नेह सूख रहा है। इन सबका जिम्मेदार कौन है? हमारे अपने ही बच्चे आज किस राह पर चल रहे है? उन्हें कुछ कहने व समझाने तक का साहस हम खो चुके है। घर में बुर्जुर्गो की स्थिति दयनीय क्यों हो रही है? आज हमारे मुँह से कड़वे व कठोर शब्द ही क्यों निकलते है?, मीठा एवं मधुर बोलना तो शायद हम भूल ही चुके है। जीवन जीने की कला व व्यवहारिक मार्ग दर्षन के अभाव में आज हमारा जीवन चारों ओर से जटिल समस्याओं व कलह की आग में झुलस रहा है। प्रत्येक घर में आज सिर्फ चार-पाँच सदस्य ही है लेकिन सबकी प्रवृति एवं सोच अलग-अलग होती है। सुबह से शाम होते-होते पचासों मतभेद खड़े हो जाते है, जिसके कारण अन्दर-ही-अन्दर ईष्र्या, द्वेष, कलह, राग-द्वेष की जड़े और अधिक मजबूत होती जा रही है।
हमारे जीवन में संस्कारों का होना अत्यन्त जरूरी है। अच्छे संस्कारों के बिना इस जीवन का कोई मोल नहीं है। जन्म से कोई भी बच्चा रावण या कंस पैदा नहीं होता। वातावरण एवं बुरे संस्कारों के कारण ही वह वैसा बनता है। कुछ माता-पिता अपनी ही संतानों में घृणा, द्वेष, कलह और दुर्भावनाएँ के भाव भरते रहते है। उनके जीवन का निर्माण इन गलत भावनाओं से करते है और यह चाहते है कि उनके बच्चें संसार में उन्हें देवता की तरह पूजवाये। यह तभी संभव हो सकता है कि जब वे उनको बचपन से ही अच्छे संस्कार देंगे। आज के दौर में माता-पिता को यह भी समझना चाहिए कि उन्होंने सिर्फ एक जीव को जन्म ही नहीं दिया बल्कि अच्छे संस्कार देकर उसका पालन-पोषण करना भी उनकी ही जिम्मेदारी एवं दायित्व है।
आज हमारी दृष्टि सिर्फ और सिर्फ भौतिक ऐष्वर्य पर केन्द्रित है। आज समस्या खाने-पीने, रोटी, मकान की कम बल्कि सच्चे इन्सान बनने की है। जिसके मन में उदारता हो, हृदय में प्रेम हो, जीवन में विनय-विवेक की ज्योति जल रही हो एवं सेवा, सरलता, सहनषीलता के गुण जीवन में खिल रहे हो तो उसके जीवन में कोई समस्या नहीं रहती। इन सभी गुणों के अभाव होने की वजह से ही आज चारो ओर समस्याएँ-ही-समस्याएँ है। एक को दूर करने का प्रयत्न करते है तो दूसरी चार सामने आकर खड़ी हो जाती है।
ज्ञानीजन कहते हैं कि- ‘‘झूठ के पाँव नहीं होते’’। अनीति से कमाया हुआ धन अपने साथ अनेक विपतियाँ लाता है। जिस धन में अन्याय-अनीति का जहर मिला है वह शांति व सुख कैसे दे सकता है? बहुत से धनवानों की आँखो में से भी आज आँसू निकलते हुए देखा जा सकता है। धन तो उन्होंने बहुत कमाया लेकिन फिर भी सुख उन्हें कहीं नहीं मिला। सुख व शांति धन-सम्पत्ति से नहीं, प्रेम, क्षमा, स्नेह व समता से ही मिलती है।
आज हम चाहते है कि सब हमसे प्यार करें, कोई भी हमसे नफरत न करें, घृणा न करें, उपेक्षा न करें, सर्वत्र हमारा आदर एवं सम्मान हो। हम जहाँ भी जायें वहाँ हमें प्रेम, आदर और सम्मान मिलें। पर हमारे चाहने मात्र से तो सब कुछ मिल नहीं सकता ना। हाँ, मिल सकता उसके लिये कुछ सूत्र है, जैसे- तन से दूसरों की सेवा करना, धन से सहयोग करना, मन में स्नेह एवं आत्मीयता रखना। व्यवहार में विनम्रता रखना, वाणी में मधुरता रखना। इन सभी बातों को यदि हम अपने जीवन में अपनायेंगे तब ही सबके प्रिय पात्र बन सकेंगे।
जो सदैव मीठा बोलता है, मधुर हृदय वाला है उसके प्रति हर किसी के मन में प्रेम उमड़ आता है। प्रेम मांगने से नहीं मिलता, वो तो देने से मिलता है। यदि हम सबसे प्रेम करेंगे, उनकी सेवा करेगें, उनका सहयोग करेंगे, मधुर शब्द व मधुर व्यवहार करेगे तो सब हम पर न्यौछावर हो जायेंगे। सबके हृदय में हमारा स्थान बन जायेंगा, सब हमारे लिये पलकें बिछायेंगे, हमारा आदर करेंगे। ज्ञानीजन अपने उद्बोधन में हमेशा कहते है कि- ‘‘चाहे जितना भी सुख मिल जाये तो छलकों मत और यदि जितना भी दुःख मिल जायें तो घबराओ मत।’’

— राजीव नेपालिया (माथुर)

राजीव नेपालिया

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