गीतिका/ग़ज़ल

तेरे पास 

दिल करता है तेरे आस-पास रहूं।

चाहे तुलसी बन तेरे आंगन रहूं ।।

तेरे हाथों से बूंद भर पानी पाकर।

प्रीत की प्यास को बुझा पाऊँ। ।

बागबां अपने बाग का तुम रहो।

मैं उस में खिलती गुलाब बनूँ। ।

छा जाऊँ तुम्हारे घर-आँगन पर। 

अमरलता बन कर सदा छाई रहूं। ।

गम जुदाई के अब सही नहीं जाती।

रात-दिन काटे न कटे,क्या करूँ। ।

विरह-वेदना तुम समझ न पाओ।।

बात ये तुम्हें कैसै मैं समझाऊं। ।

— डॉ. मंजु लता 

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।