लघुकथा

लघुकथा – बुद्धिमान मित्र

 दो परम मित्र थे। एक का नाम कर्ण तथा दूसरे का नाम सुकरात। वे एक ही स्कूल तथा एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों का धर्म बेशक अलग-अलग स्वभाव आपस में मिलता-जुलता था। खाने-पीने की आदतें भी लगभग बराबर ही थीं। दोनों एक-दूसरे के दिन-त्यौहार पर आते-जाते तथा तरह-तरह की छोटी-बड़ी सौगातें भी देते रहते। वे एक-दूसरे का जन्मदिन नहीं भूलते। प्रत्येक वर्ष एक-दूसरे का जन्मदिन भी हर्ष-उमंग-चाव से सपरिवार मनाते। दोनों कक्षा में सबसे विवेकशील-मधावी थे। उनके घर अलग-अलग मोहल्ले में थे, परंतु नजदीक ही थे। दोनों बस्ते (बैग) लेकर प्रतिदिन एक साथ ही स्कूल जाते-आते। दोनें मित्र विवकेशील. संवेदनशील तथा बुद्धिमान आदतों के पर्यावाची।

एक दिन वे दोनों स्कूल से छुटटी करके वापिस घर आ रहे थे कि बियावान रास्ते में उनको दो कुत्ते पड़ गए, दोनों डर गए, परंतु वे हौंसला (धैर्य) नहीं छोड़ते। कुत्ते बहुत खंूखार थे। दोनों ने एक दूसरे से नज़रें मिलाई, तुरंत एक स्कीम सोच ली। कर्ण प्रताप ने सुकरात को तुरंत कहा तू जल्दी जल्दी अपनी परकार निकाल ले मैं भी अपनी परकार निकाल लेता हूं। दोनों ने बचाव करते हुए परकारें निकाल लीं। कर्ण प्रताप ने मित्र को कहा कि डरना नहीं, जब कुत्ते हमला समीप होकर करें तो तू एक की आंख में जोर से परकार मार देना तो दूसरे की आंख में मैं मार दूंगा। कर्ण प्रताप ने कहा कुत्ते हमें खा जाएगें हमसे ताकतवार हैं। दोनों ने अपने-अपने बस्ते की ढाल बनाकर आगे कर लिए तथा हाथों में अपनी-अपनी पककारें मजबूती से पकड़ लीं। कर्ण प्रताप ने कहा जब भी कुत्ते की आंख में परकार धंसेगी तो वह घबरा कर लड़खड़ा जाएगा परेशान हो जाएगा अंधा-सा महसूस करेगा, तब हम दौड़ जाएंगे। दोनों ने डटकर कुत्तों का सामना किया। कर्ण प्रताप ने दाव लगा कर जोर से परकार कुत्ते की आंख में दे मारी। कुत्ता चीं-चीं-चूं-चूं करता हुआ घुम्मणधरियों में तड़पता हुआ इधर-उधर भागता हुआ परेशान हो गया, दूसरा कुत्ता भाग गया।

दोनों मित्र जल्दी-जल्दी भागते हुए भीड़ वाले क्षेत्र में आ गए। दोनों की सांसें फूल रही थीं। दोनों घबराए हुए अपने-अपने घर पहुंचे और घरवालों को सारी बात सुनाई। शाम को दोनों परिवारों ने परमात्मा का शुक्र अदा किया। बच्चों की (दोनों मित्रों) की प्रशंसा चारों ओर हो रही थी।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409