बीच की दुनिया
हर जीव की एक दुनिया होती है,
पर मानवों की दुनिया कई होते हैं,
कुछ लोग सारी जिंदगी हंसते हैं तो
कुछ लोग सारी उमर रोते हैं,
एक दुनिया उन मासूमों की
जो ताउम्र शारीरिक कष्ट उठाते हैं,
तब कहीं जाकर परिवार को
दो जून की रोटी खिला पाते हैं,
इन्हें कोई मतलब नहीं फरेब से,
सीने में भी इंसानियत और
दया छुपाकर रखते हैं खाली जेब में,
एक दुनिया उसकी है जो होते हैं अमीर,
वक्त बेवक्त ताक पर रख सकते हैं जमीर,
जो सिर्फ सोचते हैं अपने लाभ,
जलाना या बुझाना पड़े चाहे चिराग,
पर क्या पता है कि सबसे अच्छी दुनिया
किताबों की दुनिया है,
जहां विज्ञान है,ज्ञान है,
सभी समस्याओं का बेहतर समाधान है,
सूरज,चांद,तारे और अंतरिक्ष है,
जो बताता मानव उत्पत्ति का अस्तित्व है,
किताबें हमें भान कराता है कि
कौन मुर्दा और कौन जिंदा है,
वहीं सिखाता कि किस लिए
बना हुआ हर बाशिंदा है,
एक यही तो सीख की दुनिया है,
हां सचमुच ही किताबों की दुनिया
जिंदों और मुर्दों के बीच की दुनिया है।
— राजेन्द्र लाहिरी