कहानी

गैजेटेड ऑफिसर 

लखनऊ। उत्तरप्रदेश की राजधानी। नवाबों का शहर। यहां का सचिवालय। भव्य, विशाल। इसी सचिवालय में घनश्याम शर्मा एवं विमल कुमार नौकरी करते हैं। दोनों क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं। दोनों में गाढ़ी दोस्ती है। सुख-दु:ख में एक दूसरे का साथ देते हैं। ऑफिस में उनकी फ्रेंडशिप की मिशाल दी जाती है। एक साथ अलीगंज मुहल्ले में आस-पास रहते हैं। दोनों शेयरिंग बेस्ड सिस्टम के तहत स्कूटी से ऑफिस आते-जाते हैं। एक साथ काम करते हुए दस बरस बीत गए। कभी कोई मनमुटाव, अनबन नहीं।

दोनों बस एक चीज की आस लगाए बैठे थे, कि कब  गैजेटेड ऑफिसर का प्रोमोशन एग्जाम हो और वे पास होकर साहब बन जाएं। रोजगार के लिए संघर्ष के दिनों में दोनों ने बड़ी कोशिश की कि अफसर के एग्जाम क्लीयर हो जाए, परंतु बड़ी मुश्किल से क्लर्क बन पाए थे।

घनश्याम जी कुछ एटीट्यूड वाले और शौकीन स्वभाव के थे। विभाग के अफसरों से अक्सर बहस हो जाती थी। वहीं, विमल जी थोड़े इंट्रोभर्ट स्वभाव के थे। अफसरों की आज्ञा का हमेशा पालन करना, बिना कुछ कहे, न नुकुर किए।

‘पता नहीं आपका प्रोमोशन होगा भी या नहीं। बड़ी मुश्किल से घर चल रहा है।  मेरे सारे शौक तो पहले ही मर गए। वर्मा जी की वाइफ भी बात -बात में टोन मारती है। मेरे वाले ये, मेरे वाले  वो । मैं क्लर्क की बीबी जो ठहरी। एक बार आप अफसर बन जाओ। मैं भी दिखा दूंगी‘-रमा ने कहा। रमा शर्मा घनश्याम जी की वाइफ।  उधर विमल जी के घर का भी कुछ वैसा ही हाल था। उनकी वाइफ कामिनी ने भी अफसर बनने की बड़ी आशा लगा रखी थी।

खैर वो दिन भी आ गया। विभाग में 100 पदों पर ग्रुप ‘बी’ गैजेटेड ऑफिसर के लिए डिपार्टमेंटल प्रोमोशन एग्जाम का नोटिफिकेशन हो गया। दोनों इस सुनहरे अवसर  को किसी भी हाल में गंवाना नहीं चाहते थे।  रमा एवं कामिनी ने तो मनता मान रखा था। क्यों न माने! लोअर मिडिल क्लास का टैग हटने वाला था। काॅलोनी में गर्व से सर उठाकर चलेंगी और मेम साहब कहलाएंगी। साहब की बीबी।

एग्जाम की तैयारी जोर-शोर से होने लगी। चार पेपर का एग्जाम था। घनश्याम जी पास होने को लेकर ज्यादा श्योर थे। विमल जी के घर दोनों ऑफिस के बाद छह से सात घंटे पढ़ाई करने लगे। 

एक रात, ‘देख लीजिए! उंघ रहे हैं। अरे जागिए। ऐसे एग्जाम पास होइएगा, पढ़िए। आपको क्लीयर करना ही होगा। मेरी इज्जत का सवाल है‘- कामिनी ने कहा । दबाव दोनों तरफ़ था । 

एक महीने बाद। गर्रर्र.. गर्रर्र… विमल जी जल्दी कीजिए। लेट न हो जाएं। पहले दिन के एग्जाम से दोनों संतुष्ट थे। देखते-देखते चारों पेपर हो गए। ‘भाई साहब! मैं तो पक्का पास होऊंगा। वर्मा जी ने कई बार मेरे क्लर्क होने पर टोन मारा है। अब देखना मैं भी दिखा दूंगा’ चौथे दिन एग्जाम खतम होने के बाद, घनश्याम जी ने कहा। एग्जाम क्लीयर करने का काॅन्फिडेन्स और अफसरी की फीलिंग  बोलने लगा था। विमल जी ने कहा- ‘देखते हैं क्या होता है।  मुझे फोर्थ पेपर में थोड़ा डाउट है।’

एक महीने बाद। ‘संभवतः आज रिजल्ट आ जाएगा, बड़ी टेंशन हो रही है’-विमल जी ने स्कूटी के पिछले सीट पर बैठे हुए कहा। दोपहर तीन बजे के करीब। ’बधाई हो,बधाई हो, घनश्याम जी, कमाल कर दिया आपने। पार्टी चाहिए’-सेक्शन में लोग एग्जाम क्लीयर करने के लिए बधाई दे रहे थे। ‘जी जरूर, थैंक्स, थैंक्स’- घनश्याम जी ने बधाई स्वीकार करते हुए कहा। उनके खुशी का ठिकाना न था। उधर विमल जी का चेहरा उतरा हुआ था। वो एग्जाम क्लीयर नहीं कर पाए। दुःखी थे। एक बड़ा चांस हाथ से चला गया था। ‘बेटर लक नेक्स्ट टाइम विमल जी’-घनश्याम जी ने दिलासा देते हुए कहा। 

शाम के समय, ऑफिस के बाहर घर जाने के लिए शर्मा जी का इंतजार करते हुए। ‘यहां क्या कर रहे हैं, विमल जी। दोस्त का वेट मत कीजिए। शर्मा जी लाॅबी में मिले थे। कह रहे थे कि अपने बराबरी वाले के साथ उठना-बैठना चाहिए। ऑफिसर को सोसायटी में अपनी इज्जत का ध्यान रखना चाहिए, लोग क्या कहेंगे’- शुक्ला जी ने कहा। विमल जी स्तब्ध होकर शुक्ला जी ओर देख रहे थे। ’ऑटो, ऑटो’ -विमल जी ने इशारा किया।

— मृत्युंजय कुमार मनोज

मृत्युंजय कुमार मनोज

जन्म तिथि -3.8.1977 पेशा - सरकारी नौकरी (भारत सरकार) पता- टेकजोन-4, निराला एस्टेट ग्रेटर नोएडा (पश्चिम) उ.प.201306