धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

रमज़ान का ये महीना बड़ी बरकतों का है

समस्त मानव समाजको मानवता का पाठ पढ़ाने वाला ये माह,  मज़हबे इस्लाम में रमजान के नाम से जाना जाता है , परंतु इसे इस्लाम या किसी विशेष धर्म या संप्रदाय जाति तक ही सीमित रखें तो ये बुद्धिशील मानव का ओछा पन ही समझा जाएगा । रमज़ान का ये पवित्र माह खै़रो बरक़त का महीना है। प्राणी मात्र से भलाई  और नेकी का महीना है । प्राणी मात्र से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वह अधिक से अधिक समय, वक्त ख़ुदा की भक्ति यानी इबादत में गुज़ारें ।  रब्बुल इज़्ज़त अपने बंदों को हुक्म देता है कि वो पूरे माह के रोज़े रखें , नेक आमाल करें , नमाज़ अदा करें , क्योंकि ये महीना हर माह की तुलनात्मक से देखा जाए तो मे हज़ारों गुना अफ़ज़ल व आला है । प्रतिदिन सुबह सादिक़ से सूरज अस्त होने तक खाने – पीने , झूठ बोलने , चुगली करने , सुनने और गुनाहों से बचे रहने का नाम ही रोज़ा है । हर भाई को रोज़ा रखने से पहले ‘सहरी’ खाना जरूरी है । पैग़म्बर मोहम्मद साहब जिन्हें हमारे मुस्लिम भाई हुज़ूर, रसुले अकरम स्वलल्लाहो अलै वसलअम कहते हैं , ने फ़रमाया है कि सहरी खाने में बरक़त है । सहरी करने के बाद नियत करना आवश्यक होती है । ‘ इंशा अल्लाह मैं कल के लिए रोजे की नियत कर रहा हूँ । बाद में इसके दिन भर खुदा की इबादत में लगे रहकर और सूर्य अस्त तक कुछ भी खाना – पीना नहीं चाहिए अपने रोज़मर्राह के कामों की मनाही नहीं है । तत्पश्चात रोज़ा खोलना होता है कि ए रब मैंने तेरे लिए रोजा रखा और तेरे ही लिए तेरे दिए रिज़्क़ से रोजा अफ़्तार कर रहा हूँ । 

पैग़म्बर सा. ने फ़रमाया कि इस माह में आसमान के सारे दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम यानी नर्क़के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं । शैतानों को क़ैद कर लिया जाता है । रोज़दार के मुंह की बू खु़दा के नज़दीक़ मुश्क़ की ख़ूशबू से ज्यादा पसंदीदा और पाकीज़ा है । रोज़ा  ढाल के समान है, जो दुनिया के गुनाहों से और आख़ेरत में (मरने के बाद हमें हमेशा – हमेशा के लिए मिलने वाली दुनिया का फ़ैसला कुन दिन ) गुनाहों से बचाने वाला है । रोज़दार को चाहिए कि फ़ालतू बातों से लड़ाई – झगड़े , गुस्से , झूठ , मारपीट , क़त्ल , ग़ारत आदि से बचें , हमारे मुल्क में सभी समूदाय जाति के लोग रोज़दार के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का भाव रखते है । ईश्वर एक है, उसके चाहने वालों की भक्ति के तऱीके अलग है ।रोज़ा वो अज़ीम फ़रीज़ा है जिसको रब यानी अल्लाह रब्बुल ईज़्ज़त ने अपनीतरफ़ मंसूब फरमाया है। और क़यामत  के दिन अल्लाह ताला उसका बदला और  बगैर किसी वास्ते  के बज़ात  खुद रोज़दार को इनायत फरमाएंगे। खुदा वन्द करीम ने अपने बंदों के लिए इबादत के जितने भी तरीके़ बताए हैं उनमें कोई ना कोई हिम्मत ज़रूर पोशीदा है । नमाज़ ख़ुदा के विसाल का ज़रिया है। उसमें बंदा अपने माबूद ए हक़ीक़ी से गुफ़्तगू करता है।  रोज़ा भी खुदा से  परवरदिगार से लो लगाने का एक ज़रिया है। जातियों , समुदायों का निर्माता स्वयं मनुष्य है ।

रमज़ान के माह में जन्नत को सजाया जाता है । पैग़म्बर साहब ने फ़रमाया रमज़ान के माह में अर्श के नीचे से एक हवा चलती है , जो जन्नत की ख़ूबसूरत हूरों तक पहुंचती है । इस हवा के लुत्फ़ और आनंद को महसूस कर वे कहती है कि ऐ हमारे रब हमारे लिए अपने रोज़दार बंदों में से शौहर अता फ़रमा , जिनसे हमारी आंखें नम हो और सुकून व क़रार मिले । हुज़ूर पुर नूर ख़ुदा के मेहबूब ने फरमाया कि शब ए क़द्र रमजान की विषम रातों (27 वीं, 23 वीं या 21 वी ) में इबादत का सवाब हज़ारों महीनों की इबादत से भी अधिक है। जो शख़्स इन रातों में इबादत करेगा , पाक़ परवरदिगार उसे दोज़ख़ की आग से बचा लेगा । मज़हबे ईस्लाम में साफ़ बताया गया है कि इंसान इच्छाओं का गुलाम न बने , वरन् अपनी  ख़्वाहिशों को अपना गुलाम बनाए , ईच्छाओं की गु़लामी इंसान की  बर्बादी का नुस्ख़ा है । रोज़े जब पूरे हो जाते हैं ,  तब आता है भाईचारे , औऱ अमन का पैग़ाम लेकर  ईद का त्योहार,खुशियों का दिन।

— डॉ, मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- dr.m.a.shaholo2@gmail.com , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,