ग़ज़ल
कुछ कहा जो आज तुमने , मैं समझ तक़रार बैठा
प्यार जो तुमने जताया , वह समझ इंकार बैठा
इश्क़ की फैली रही जो , चाँदनी मुझको लुभाती
वह तभी सिकुड़ी जिसे मैं , सुन समझ दिलदार बैठा
जो इशारा ही किया था , ढंग से देखा नहीं तब
मैं चला आया तुम्हारे पास कर इज़हार बैठा
भाग्य इसको मैं कहूँ या , और कुछ इसको कहूँ मैं
आज कयामत आ चली थी , मैं समझ ही प्यार बैठा
मिल न जाये आज धोखा , प्यार से मैं दूर रहता
इश्क़ की बाज़ी लगी तो , दिल वहीं पे हार बैठा
आज से हो गयी है , देख गलती ज़िदगी में
माफ़ करना आज गलती , मैं अभी तैयार बैठा
दर्द दिल में बढ़ चला है , नासूर बने ज़ख़्म रिसते
न्याय होगा साथ मेरे , मैं लगा दरबार बैठा
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’