मित्रता
मित्र चलो, गोवर्धन घुमा दूँ
अपने प्रिय स्थल तो दिखा दूँ
मन की बात करेंगे श्रीदामा
बहुत दिन बाद, मिले हो सुदामा
अब न तुम्हें यूँ जाने दूँगा
सखा मेरे, सब दुख हर लूँगा
हरि, तुम हो दुख हरने वाले
जहाँ कहो, वहाँ मैं चल दूँगा
गोवर्धन की पीठ बैठकर
अपनी कहानी तुमसे कहूँगा
— बृज बाला दौलतानी