कविता

मित्रता

मित्र चलो, गोवर्धन घुमा दूँ
अपने प्रिय स्थल तो दिखा दूँ

मन की बात करेंगे श्रीदामा
बहुत दिन बाद, मिले हो सुदामा

अब न तुम्हें यूँ जाने दूँगा
सखा मेरे, सब दुख हर लूँगा

हरि, तुम हो दुख हरने वाले
जहाँ कहो, वहाँ मैं चल दूँगा

गोवर्धन की पीठ बैठकर
अपनी कहानी तुमसे कहूँगा

— बृज बाला दौलतानी