गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़रा तुम प्यार से देखो कली अंतर की खिल जाये
बहारों की करो बातें अभी दिल दिल से मिल जाये

वफ़ा की राह पर चलते फ़साने बन ही जाते हैं
कभी हमसफ़र कोई तो हमें देकर ही दिल जाये

सुहानी करते रहें बातें तभी दिल को सुनाएँ हम
कभी टस से न हों मस हम कहे दिल हो अटल जाये

कहानी प्यार की बनती घुमाओ मुँह न अपना तुम
नजाकत से अगर देखो तसल्ली दिल को मिल जाये

बहुत कमसिन रही हो तुम सँभल कर अब चलो सुन लो
पकड़ अच्छी रखो पल – पल न पग अब तो फिसल जाये

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’