राजनीति

सरकार को डैड ऑफ डेमोक्रेसी कहना गलत नहीं ?

देश में डेमोक्रेसी है और टू मच डेमोक्रेसी है। पहले से कहीं  ज्यादा डेमोक्रेसी है। हमेशा से ज्यादा डेमोक्रेसी है। जितनी डेमोक्रेसी आजकल है इतनी ज्यादा डेमोक्रेसी पहले कभी भी नहीं थी। पुराने लोग बताते हैं‌ कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इमरजेंसी में भी इतनी डेमोक्रेसी नहीं थी जितनी आजकल है।उससे भी अधिक पुराने लोग यह बताते हैं‌ कि आजकल अंग्रेजों के जमाने से भी अधिक डेमोक्रेसी है। अधिक हो या न हो पर अंग्रेजों के जमाने के बराबर डेमोक्रेसी तो अवश्य ही है। क्योंकि यह डेमोक्रेसी भी उतनी ही बहरी है जितनी अंग्रेजों के जमाने में थी।डेमोक्रेसी सरकार जी के कार्यकाल में इतना अधिक बढ़ी है कि अब हमारा देश मदर ऑफ डेमोक्रेसी  कहलाने लगा है। कोई और कहे या न कहे पर सरकार जी तो यह कहते ही हैं। सरकार जी ने डेमोक्रेसी को इतनी अधिक बढ़ाया है कि हम सरकार जी को बेहिचक डैड ऑफ डेमोक्रेसी कह सकते हैं। सरकार जी ने अपनी डेमोक्रेसी को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले तो सारी संस्थाओं में डेमोक्रेसी खत्म की। अब सारी की सारी संस्थाएं सरकार के लिए, सरकार जी के लिए काम करने लगी हैं। फिर सरकार जी ने चुनाव आयोग की ओर कदम उठाया और चुनाव आयुक्त के चुनाव में डेमोक्रेसी लागू की। अब चुनाव आयुक्त को सरकार जी ही स्वयं डेमोक्रेटिक ढ़ंग से चुनेंगे।और उन्होंने चुन भी लिया है। रामदास अठावले जी ने यह बहुत अच्छा किया। साफ-साफ बता दिया कि जिस किसी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हो, कुर्सीधारियों के पाले में उनका स्वागत है। उनके दरवाजे तो सभी के लिए खुले हुए हैं। फिर चाहे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप किसी ने भी लगाए हों। खुद कुर्सीधारियों ने लगाए हों; खुद सरकार जी ने लगाए हों, तब भी कोई हर्ज नहीं है। अपने-पराए, छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है, पूरी तरह से समदर्शिता है। हां! कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं है। मामला पूरी तरह से स्वेच्छा का है। आने वाले की मर्जी पर है कि आना चाहे तो आए या नहीं आए।सरकार जी की डेमोक्रेसी में इतनी गहरी श्रद्धा जो है। बल्कि अब तो मामला डेमोक्रेसी से भी आगे निकल गया है–डेमोक्रेसी की मदर जी के लेवल का मामला जो ठहरा। सरकार जी घर-वापसी से लेकर गृह प्रवेश तक, पूरी तरह से भ्रष्टाचार के आरोपियों की मर्जी पर छोडऩे पर ही नहीं रुक गए हैं। वह अच्छी तरह से जानते हैं कि चुनने को वास्तविक विकल्प ही नहीं होगा, तो कैसी मर्जी और कैसा चुनाव।रामदास अठावले जी ने खुलासा कर के बताया है कि इन भ्रष्ट कहलाने वालों के लिए  सरकार जी ने वास्तविक विकल्प के तौर पर अपने घर के दरवाजे के ठीक सामने, जेल के दरवाजे भी खुलवा रखे हैं। जो सरकार जी के घर में नहीं आना चाहे, आराम से जेल जा सकता है। और जो जेल नहीं जाना चाहे, उतने ही आराम से भगवाधारियों के घर जा सकता है। थैंक यू अठावले जी झूठी पर्देदारी खत्म कर, सच-सच सब बयान कर देने के लिए!और अठावले जी ही नहीं, पूरा का पूरा  कुनबा ही, किसी तरह की पर्देदारी रखे भी क्यों? इस सब में छुपाने वाली बात ही क्या है? वाशिंग मशीन, वाशिंग मशीन कहकर, जो विरोधी इसके लिए भगवाइयों को शर्मिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं, वे न इस देश को जानते हैं, न इसकी संस्कृति को जानते हैं। वर्ना कौन नहीं जानता है कि यह गंगा मैया का देश है। गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, इस देश की, उसकी संस्कृति की पहचान है। और गंगा की सबसे बड़ी पहचान क्या है? पाप मोचनी। गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं।गंगा ही हमारी ऑरिजनल वाशिंग मशीन है, जो न धुलाई करने में कोई भेद करती है और न धुलाई करने के लिए किसी तरह की कोई शर्त लगाती है कि फलां पाप होगा तो धोया जाएगा, ढिमकां पाप होगा तो नहीं धुलेगा! जो भारत की संस्कृति से करता हो प्यार, वाशिंग मशीन के गंगा मॉडल की महत्ता से कैसे करेगा इनकार।फिर सरकार जी को तो वाशिंग मशीन इस मॉडल से और ज्यादा लगाव होना ही हुआ। सिर्फ बनारस से सांसद भर नहीं हैं, गंगा मैया की उन पर विशेष कृपा है। वह अपनी जुबान से कई बार बता चुके हैं कि उन्हें, सैकड़ों मील दूर से, गंगा मैया ने बुलाया है! गंगा मैया मॉडल की वाशिंग मशीन सरकार जी नहीं चलाएंगे, तो क्या इंडिया वाले चलाएंगे! फिर वाशिंग मशीन का आदर्श सिर्फ गंगा मैया मॉडल तक ही सीमित थोड़े ही है। नहीं, हम यह हर्गिज नहीं कह रहे हैं कि सिर्फ गंगा मैया मॉडल पर सरकार जी की पार्टी वाशिंग मशीन चलाए तो उसमें कोई कमी मानी जाएगी। गंगा मैया मॉडल में कोई कमी रह जाने की बात तो कोई हिंदू विरोधी, राष्ट्रीय संस्कृति विरोधी यानी राष्ट्र विरोधी ही कह सकता है। यह तो राम मंदिर का विरोध करने वाली ही बात हो गयी। फिर भी नरेंद्र मोदी जी ने वाशिंग मशीन की गंगा परंपरा को, आधुनिकता से बल्कि सीधे-सीधे आजादी की लड़ाई से जोडऩे का भी बखूबी ध्यान रखा है। तभी तो वाशिंग मशीन का सरकार जी का मॉडल, गंगा मैया मॉडल होने के साथ ही साथ, महात्मा गांधी मॉडल भी है। कौन भूल सकता है बापू की बुनियादी शिक्षा–पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। यानी भ्रष्टता या भ्रष्टाचार से घृणा करो, भ्रष्टाचार करने वाले से नहीं।और यह भ्रष्टाचार करने वाले घृणा न करने की नकारवादी मुद्रा की ही बात नहीं है। गांधी जी तो हरेक के सुधार की संभावना में और इसके लिए हरेक से प्यार करने की सकारात्मकता में विश्वास करते थे। यह गुण सरकार जी की वाशिंग मशीन में कूट-कूटकर भरा हुआ है। देखा नहीं कैसे हिमंता विश्व सरमा से लेकर, सुवेंदु अधिकारी, प्रफुल्ल पटेल, अजीत पवार, अशोक चव्हाण आदि, कितने ही जाने-माने नेता, सरकार जी की पार्टी से भ्रष्ट कहलवाने के बाद, वाशिंग मशीन में धुलकर पाक-साफ ही नहीं हो गए, सरकार जी से दिल से माफी हासिल करने के बाद, सांसद-विधायकों आदि के पदों से भी आगे मंत्री, उप-मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के पदों तक भी पहुंच गए हैं। हमें नहीं लगता कि गांधी जी भी पापियों से इतनी ज्यादा मोहब्बत करने तक की बात सोचते थे। जब सरकार जी की वाशिंग मशीन ने, ऑरिजनल वाले गांधी को भी पीछे छोड़ कर दिखा दिया है, फिर इक्कीसवीं सदी के नकली गांधी तो उनके सामने आते ही कहां हैं, फिर वे भले ही मोहब्बत की दुकान खोलने का कितना ही नाटक क्यों न करते फिरें! उनका अगर मोहब्बत का ठेला है, तो सरकार जी ने तो मोहब्बत का विशालकाय मॉल ही खड़ा कर दिया है।फिर सरकार जी की वाशिंग मशीन न सिर्फ गंगा मैया मॉडल का मामला है और न महात्मा गांधी मॉडल का ही मामला है। इन दोनों मॉडलों की महत्ता अपनी जगह, हैं तो दोनों उधारी के ही मॉडल। पर सरकार जी की वाशिंग मशीन में उनका अपना ऑरीजिनल तत्व भी भरपूर है। आखिरकार, सरकार जी के स्वच्छता अभियान की मौलिकता से तो उनके विरोधी भी इंकार नहीं कर सकते हैं। गांधी जी को सरकार जी अपने स्वच्छता अभियान का ब्रांड एंबेसेडर बनाया जरूर है, लेकिन इससे उनके अभियान की मौलिकता कम नहीं हो जाती है। और सरकार जी ने यह तो शुरू से ही यह स्पष्टï कर दिया था कि उनकी स्वच्छता सिर्फ गलियों-मोहल्लों, सडक़ों के कूड़े-कचरे को ही नहीं हटाएगी। उनकी स्वच्छता दूर तक जाएगी।सरकार जी की धुलाई मशीन तो स्वच्छता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का एकदम मूर्त रूप है। इधर से भ्रष्ट डालो, उधर से पाक-साफ निकालो। मैं तो कहूँगा कि मोदी जी की पार्टी जहां इतना सब बदल रही है, उसे अपना निशान भी कमल से बदलकर, वाशिंग मशीन कर लेना चाहिए। परंपरा की परंपरा और आधुनिकता की आधुनिकता। वैसे भी पब्लिक की मति फिर जाए तो कमल तो कुम्हला भी सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का निशान, कम से कम सदाबहार तो हो, जो न सावन सूखे न भादों हरा हो।

— जुनैद मलिक अत्तारी

जुनैद मलिक अत्तारी

स्वतंत्र लेखक पत्रकार नई दिल्ली