गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

काग़ज़ है इतना हल्का बचाया न जायेगा,
ये गहरा रंग इससे छुड़ाया न जाऐगा।

टूटा है एक ताजमहल इस ज़मीन पर,
अब इस जगह पे कुछ भी बनाया न जाऐगा।

हाथों से अपने तुमने लगाया है जो शजर,
पतझड़ में भी वो तुमसे गिराया न जाऐगा।

कल सुब्ह आने वाले हैं परदेस से सजन,
इस रात मुझसे ख़ुद को सुलाया न जाऐगा।

उस दिलरुबा का मुझको दुपट्टा ही चाहिए,
सादा कफ़न ये मुझको उढ़ाया न जाऐगा।

फूलों में कौन सबसे ज़ियादा हसीन है,
आसानी से ये तुमसे बताया न जाऐगा।

सुसराल जाते वक़्त वो लिपटी है इस तरह,
अब इसको मां से जल्द छुड़ाया न जायेगा।

दानिस्ता एक लड़की ने मुझको गिराया है,
अब मुझसे आज ख़ुद को उठाया न जायेगा।

— अरुण शर्मा साहिबाबादी

अरुण शर्मा साहिबाबादी

नाम-अरुण कुमार शर्मा क़लमी नाम-अरुण शर्मा साहिबाबादी पिता -जगदीश दत्त शर्मा शिक्षा-एम ए उर्दू ,मुअल्लिम उर्दू ,बीटीसी उर्दू। जीविका उपार्जन- सरकारी शिक्षक पता-एफ़ 73, पहली मंज़िल,पटेल नगर-3, ग़ाज़ियाबाद। मोबाइल-9311281968 पुस्तकें-खोली, झुग्गी,पुल के नीचे एक पत्ती अभी हरी सी है, मुनफ़रिद,इजतिहाद.मुफ़ीक़ ( सभी कविता संग्रह) पुरुस्कार-उर्दूकी कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। कई सम्मान समारोह आयोजित हुए हैं।

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