कविता

तुम्हारी यादें

कल रात
गीली हो गयीं थीं,
तुम्हारी यादें
आँख से गिरते पानी से,
सुबह अलगनी पर
सुखाने डालीं थी,
भाप बनके उड़ने लगीं
तुम्हारी यादों की गंध
मेरे आईने को धुन्धुलाती,
आईने के अक्स पर
मौजूद है तुम्हारी  पहचान,
जो  उग आती हैं माथे पर,
मेरी बिंदी की तरह
जैसे अमावस को छोटा नन्हा चाँद।
_______प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

8 thoughts on “तुम्हारी यादें

  • Man Mohan Kumar Arya

    इस प्रशंसनीय रचना के लिए धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      shukriya man mohan ji 🙂

    • प्रीति दक्ष

      bahot shukriya Rajiv upadhyaay ji.

    • प्रीति दक्ष

      shukriya raajiv upadhhayay ji

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • प्रीति दक्ष

      dhanywaad Vijay ji

    • प्रीति दक्ष

      shukriya vijay ji

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