गीतिका/ग़ज़ल

गजल : जीवन की सच्चाई है

माँ गीता के श्लोक सरीखी मानस की चौपाई है.
माँ की ममता  की समता में पर्वत लगता राई है.

घर की कितनी जिम्मेदारी थी बेटी के कंधों पर,
आज विदा की बेटी तब यह बात समझ में आई है.

लक्ष्मण जैसा दिखने वाला भाई विभीषण हो जाये,
फिर दिल को कैसे समझायें-भाई आखिर भाई है.

क्या होती है बहना कोई ऐसे भाई से पूछे,
त्यौहारों पर सूना जिसका माथा और कलाई है.

तन्हाई थी शादी की फिर इक प्यारा परिवार बना,
फिर बच्चों की शादी कर दी फिर वो ही तन्हाई है.

आज मिली है पेन्शन मे बस यादों की मोटी अलबम,
यों तो पिता ने जीवन भर की लाखों-लाख कमाई है.

आप भले ही माने मैंने कह दी गजल ये रिश्तों पर,
पर न गजल ही है ये केवल, जीवन की सच्चाई है.

डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

One thought on “गजल : जीवन की सच्चाई है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

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