गीत/नवगीत

उंगलियों से लटों को घुमाओ ना यूं…

उंगलियों से लटों को घुमाओ ना यूं
तीर कातिल अदा के चलाओ ना यूं।
जाने कितने दिलों मे जगेगी कसक
तुम नजर को हया से झुकाओ ना यूं॥

कुछ तो भीगे से मौसम की मदहोशियां
कुछ तुम्हारी निगाहों ने जादू किया
बिन पिये ही बहकने लगे है कदम
जाम आंखों से मय के पिलाओ ना यूं…
जाने कितने दिलों मे जगेगी कसक
तुम नजर को हया से झुकाओ ना यूं…

रेशमी सा बदन , रेशमी शोखियां
दिल लुभाने लगीं, होठों की तितलियां
रुक जायें कहीं धडकनो का सफर
प्यार का फूल, बन मुस्कुराओ ना यूं…
जाने कितने दिलों मे जगेगी कसक
तुम नजर को हया से झुकाओ ना यूं…

थम गयी है तुम्हे देखने को फिजा, रूप फूलों का तुमको लगा ताकने
चांद की चांदनी मंद पडने लगी, अप्सराऐं लगी स्वर्ग से झांकने
रास्ते ना बदल लें बहारे तमाम, इन नजारो से नजरें मिलाओ ना यूं….
जाने कितने दिलों मे जगेगी कसक
तुम नजर को हया से झुकाओ ना यूं…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.