कोई तो अब राम बनो
सत्कर्म, सदभाव का
कोई तो अब नाम बनो।
कितने हृदय में रावण जन्मा
कोई तो अब राम बनो।
धरा कर रही है विलाप
कोई सत्य का संग्राम बनो।
पाप की लेखनी रोक सके
कोई तो अब पूर्णविराम बनो।
अधर्म और दुष्कर्म मार्ग का
कोई तो अब विश्राम बनो।
जिसमें निश्छल नित प्रीत रहे
कोई तो ऐसा तपो धाम बनो।
कब तक पराजय का शोक रहे
कोई तो सफल परिणाम बनो।
कितने हृदय में रावण जन्मा
कोई तो अब राम बनो।
वैभव”विशेष”
बहुत खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई..
आपकी सराहना ने उत्साहवर्धन किया है
हृदय से धन्यवाद सर जी
उम्दा रचना
मेरा इंतजार खत्म हुआ आपकी
प्रतिक्रिया ने उत्साह बढ़ाया है।
हार्दिक धन्यवाद