छोटी सी हूँ
छोटी सी हूँ लेकिन
छम-छम करती घर-द्वार
छोटी सी हूँ लेकिन
मात-पिता का हूँ संसार
कभी कूदती, कभी फाँदती
कभी मैं अम्मा से छिप जाती
कभी जो करती मैं मनमानी
वो आंगन में सारे दौड़ाती
फिर भी अम्मा ले जाती बाज़ार
छोटी सी हूँ लेकिन
छम-छम करती घर-द्वार
बाबा की अँगुली को थाम
लेती सब चीज़ों का नाम
हर सवाल का देते जवाब
जैसे उनको और नहीं कुछ काम
झुँझलाते हैं पूँछूँ जब सवाल हज़ार
छोटी सी हूँ लेकिन
छम-छम करती घर-द्वार
पायल से शोर मचाती हूँ
जब चाहें चिल्लाती हूँ
मेरे शोर पर नहीं ज़ोर
सुख देती, सुख पाती हूँ
यही है मेरे शोरों का सब सार
छोटी सी हूँ लेकिन
छम-छम करती घर-द्वार
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