कविता : विकास
गगनचुम्बी ईमारते
संगमरमरी सड़कें
आरामदायक वाहन
बड़ी बड़ी सुरंगें
वायुयान, ,जलयान
विद्युत्, दूरभाष
दूरदर्शन, कंप्यूटर से
आरामदायक जीवन
जीने की कल्पना
मंगल पर खोज
रोगों पर विजय
जैव प्रौद्योगिकी
हर क्षेत्र में
‘विकास’
मन अशांत
तन पीड़ित
संस्कृति का ह्रास
मानवीय मूल्यों की समाप्ति
बस
विकास ही विकास
— अर्जुन सिंह नेगी
सुंदर रचना अर्जुन नेगी जी …बधाई …!