दिल में तूफ़ान
दिल तो आखिर दिल है,
दिल ही दिल में
कैसे पल दो पल में,
क्या से क्या हो जाता है,
इक प्यार करने वाला दिल,
शीतल ‘शबनम’ से —
आग का ‘शोला’ बन जाता है,
नफरत की आंधी में,
‘दिल ‘ कहीं दूर भटक जाता है,
दिल की महकती हुई मंद मंद ‘खुशबू’
सहम कर ठिठक जाती है, ,
और इस बेमुराद नफरत की आंधी में
यह कहीं दूर छिटक जाती है,
दिल में प्यार के रास्ते पर ,
चल रही सुखमयी पुरवाई,
तूफ़ान बन कर–
दिलों के घरोंदों को
तिनका तिनका बिखेर कर
दूर उडा कर ले जाती है,
दिल रोता है, क्रोध का बादल फटता है ,
कटु शब्दों का ज़हर बरसता है–
और यह नफरत की उफनती बाढ़ ,
प्यारे रिश्ते भी बहा ले जाती है,
तूफान तो क्षणिक है,
कुछ देर में थम जाएगा—
पर अपने ‘अवशेष’ तो
ज़ख़्मी दिलों पर छोड़ जायेगा,
जो दिल के घरोंदे तिनका तिनका,
कर दिए इस आंधी ने–
क्या उन दिलो को दोबारा
फिर आबाद कर पायेगा ??
दिल तो आखिर दिल है,
–जय प्रकाश भाटिया