गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पाने को जिन्हे हमने ता उमर आंसू बहाए थे ।
खबर हमारी मौत की सुन बह मुस्कराए थे ।।

फितरत है उनकी बात-बात पे गिरगिट बन जाना ।
आज भी आए ऐसे कि हम पहचान न पाए थे ।।

लोग मिले सब हमसे बाहें फैला अपनो की तरह ।
और वह अश्कों का हार पहनाने को लाए थे ।।

न मिलने की कस्म खा कर बह गए थे सदा को ।
फिर भला विदा करने वह आज क्यों आए थे ।।

हँसाओ कोई, उनकी खामोशी से डरता है “दीक्षित” ।
रोको मत मुद्दतों बाद वह मिलने को आए थे ।

— सुदेश दीक्षित

सुदेश दीक्षित

बैजनाथ कांगडा हि प्र मो 9418291465