गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

जाम भरा था जिंदगी का मगर हमें पीना नहीं आया ,
सांसें तो लेते रहे हम मगर हमें जीना नहीं आया ,

ताउम्र रहे लब मेरे कुछ इस कदर सिले हुए कि ,
लब तो हिले मगर, दर्द लफ्जों में बयां करना नहीं आया ,

कई साज़ कई तराने गाये जिंदगी ने हर राह हर मोड़ पर ,
सुनते रहे मगर किसी साज़ पर हमें गुनगुनाना नहीं आया ,

सिलसिला बदस्तूर जारी रखा ज़माने ने ज़ख्म देने का ,
हसते रहे मगर हमें , ज़ख्मों पर मरहम लगाना नहीं आया ,

दुनिया बरसों से कहती रही बेदर्द , बेमुरव्वत हमें ,
सुनते रहे मगर हमें दुनियां को झुठलाना नहीं आया ।

– प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

5 thoughts on “गीतिका

  • प्रिया वच्छानी

    शुक्रिया विजय कुमार सिंघल जी ।

    • प्रिया वच्छानी

      शुक्रिया अभिवृत जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, प्रिया जी. इसी प्रकार की कवितायेँ हम और भी पढ़ना चाहते हैं.

    • प्रिया वच्छानी

      जी जरुर कोशिश करुंगी विजय जी

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