गीत/नवगीत

होलिया में उड़े रे गुलाल: काव्य-रचनाएं: आपकी-हमारी-2

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1.फागण आयो (गीत)
सखी! आयो आयो रे, फागण आयो..
हथेलियों में रंग, गुलाल, अबीर भर लायो!

हरियाली धरती ने सरसों रा फुलड़ा सु अम्बर मढ़ियों….
लहरियाँ साफ़ा री कलगी में हीरा मोती जड़ियो!

भंवरसा री खोडिली आंखों में, होली रो हुड़दंग भरियों!
गुलाल गालों पर मल मल, साजन म्हारो हिवड़ो हरियो!

आँगन में घासियों री गेर लूरके, मेरी ऊपर मोर टहुके,
हाथीदन्ति चुड़ला बाजे, रुनझुन रुनझुन पायल खनके!

ढोल, मंजीरा, नौबत बाजे, मावा मिठाई रा थाल साजे!
थंडाई में घोली भांग पीयू जी, गौरां जी रा घुंगरियाँ बाजे!

प्रेमरस में भीगी राधा, कान्हा जी ने अरज करे रे!
मत डारो रंग मोरे ऊपर रसिया! अंग-अंग में दहके शोले!

बून्द बून्द अगन बढ़ावे, विरह वेदना मन में जगावे!
बाँसुरी बजैया! कान्हा आओ! तुम में मैं, मुझ में तुम समाओ!

सखी! आयो आयो रे, फागण आयो..
हथेलियों में रंग, गुलाल, अबीर भर लायो…
-कुसुम सुराणा
(राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है)
कुसुम सुराणा का ब्लॉग
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2.हम होली के हमजोली हैं (गीत)

हम होली के हमजोली हैं, इस होली में हमजोली हैं
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

उल्लास भरी पिचकारी से, इक दूजे पर हम वार करें
लें हाथ पकड़ इक दूजे का, ये जीवन-नैया पार करें
ना बन्धन ना कोई पहरा है, दिल मेरा तेरी ही खोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

हाथों में रंग गुलाल लिए, क्यों दूर खड़ी शर्माती हो
नैंनों से बाण चलाती हो, यूं देख मुझे इठलाती हो
बस दूर-दूर रह करके क्यूं, तू यूं कर रही ठिठोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं

अधरों का रंग अलग दिखता, आंखें रंगीन-सी लगती है
हाथों की मेंहदी रंग अलग, और पांव महावर दिखती है
तेरे पैरों की छाप जहां, यूं लगे बनी रंगोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

आज रहूं मैं ना खुद मैं, तू भी तो खुद को ना पाये
इक दूजे में यूं खो जायें, कि मैं और तुम हम हो जायें
मिल करके यूं मदहोश हुआ, तू लगे भांग की गोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

ना रंग लगा उन गालों पर, बस छूने से ही लाल हुए
बाहों का हार उन्हें पहना कर हम तो आज निहाल हुए
आलिंगन से यूं शर्मा गई, जैसे वो बैठी डोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

अपने अधरों का रंग लगा कर, अपने रंग में रंग गई वो
रंग लगा पर दिखता ना, जाने क्या जादू कर गई वो
इक बूंद कहीं ज्यादा न गिरा, यूं लगे कि जैसे तोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

ना लाल लगा ना पीला कर, ना ही वस्त्रों को गीला कर
ना गाल गुलाल लगाया कर, ना ब्यूटी पार्लर जाया कर
तेरे सुर्ख कपोलों के आगे, फीके सब कुमकुम रोली हैं
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

पीड़ा अन्तर्मन की छोड़ो, खुशियां-ही-खुशियां हो जायें
आ प्यार के रंग में ऐसे रंग, हम इक-दूजे में खो जायें
बस रंग-ही-रंग भरें इसमें, जीवन रंगों की झोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

अब भाव समर्पण का रखकर, हम खुद को यूं तैयार करें
सांसों-से-सांस मिला करके, आ जा नजरों से प्यार करें
मायूस लगे मासूम दिखे, सूरत वो कितनी भोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

आज लिखूं अंगों पे तेरे, मैं नजरों से अपने कविता
कितना सुखदायक मंगलमय, होली का ये पल बीता
होली पावन ‘एहसास’ किया, होली हो मुबारक बोली है
जीवन भर खुशियों के रंग से, हम होली के हमजोली हैं.

 – अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

3.आओ मिल होली खेलें (गीत)

होली आई लेके रंग-गुलाल, आओ मिल होली खेलें
रहे किसी को न कोई मलाल, आओ मिल होली खेलें-
1.भर पिचकारी श्याम ने मारी
भीज गई राधा की सारी
मुखड़े का रंग हुआ लाल आओ मिल होली खेलें-
2.रूठी राधा मनावें कान्हा
मुरली पे रसिया सुनावें कान्हा
अब मान भी जाओ सरकार आओ मिल होली खेलें-
3.गोप-गोपियां रास रचावें
रंग लगावें, फाग मनावें
खाएं गुझिया मचावें धमाल आओ मिल होली खेलें-
4.ढोल-मंजीरा-चंग बजावें
सब मिल झूमें-नाचें-गाएं
4.ढोल-मंजीरा-चंग बजावें
सब मिल झूमें-नाचें-गाएं
दे-देकर थाप पे ताल आओ मिल होली खेलें-
5.नंदबाबा दे रहे हैं बधाई
मात यशोदा बांटें मिठाई
लेकर पकवानों के थाल आओ मिल होली खेलें-

-लीला तिवानी

4.अभी तक सिर खुजा रहा है (हास्य गीत)

पत्नी बोली, ”अब से महिलाओं में 16 की जगह 17 श्रृंगार हुआ करेंगे.”
बढ़ते खर्चे के डर से डरा पति बोल्या- ”क्‍यों?”
”इब हेयर डाई को भी श्रृंगार में जोड़ लिया गया है,” पत्नी बोली.
पति अभी तक सिर खुजा रहा है.

बुजुर्ग पति से पंडित ने पूछ्या- ”तुम हर साल अपनी पत्‍नी से शादी करते हो, ऐसा क्‍यों?=
बुजुर्ग पति बोल्या, ”बस एक शब्द सुनने के लिए.”
पंडित हैरान होकर बोल्या- ”कौन सा शब्द?”
”वही, जब आप कहते हैं कि लड़के को बुलाओ.”. बुजुर्ग पति ने जवाब दिया.
पंडित अभी तक सिर खुजा रहा है.

पति ने पत्नी से पूछ्या- ”कहां गायब थीं 4 घंटे से?”
पत्नी बोली- ”मॉल गई थी”.
पति ने पूछ्या- ”क्या लाई?”
”1 हेयरबैंड और 45 सेल्फी!” पत्नी बोली.
”यानी फेसबुक पर अलग-अलग हेयरबैंडों वाली सेल्फी के साथ 45 दिनों तक रौब का इंतजाम!”
पति अभी तक सिर खुजा रहा है.

पप्पू को राजा के सिपाहियों ने पकड़ लिया और दरबार ले गए…
राजा बोल्या, ”इसको बंदी बना दिया जाए.”
नासमझ-सा पप्पू बोल्या. ”नहीं-नहीं जहांपनाह, रहम कीजिए. मुझे बंदी नहीं बनना, बंदा ही रहने दें.”
राजा अभी तक सिर खुजा रहा है.

-लीला तिवानी

लीला तिवानी का ब्लॉग
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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “होलिया में उड़े रे गुलाल: काव्य-रचनाएं: आपकी-हमारी-2

  • लीला तिवानी

    आज 3 मार्च से होलाष्टक शुरु हो रहा है. होलिका दहन के साथ ही 9 मार्च को होलाष्टक को समाप्त हो जाएगा.

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