कविता

करते हैं वृक्षारोपण

आओ मिलकर करें प्रकृति का श्रृंगार,

बिन इसके सूना है यह सारा संसार,
आओ सभी करते हैं मिलकर वृक्षारोपण,
तब खुशियों से महकेगा प्रकृति का घर और आँगन।
आधुनिकता के विकास की अंधाधुँध दौड़ में,
किया है हमने प्रकृति का बहुत ही विनाश,
आओ लगाते हैं एक-एक पेड़ मिलकर,
तभी प्रकृति करेगी हमारे गुनाहों को माफ।
आज फैला है चहुँ ओर प्रदूषण,
जी रहे हैं सभी जीव घूँट-घूँट कर,
आओ करे मिलकर वृक्षारोपण,
तभी महकेगा माँ वसुंधरा का आँचल।
हम मानव हैं एक सभ्य समाज के,
हम जीते हैं बुद्धि और विवेक से,
तो फिर क्यों हमने भूमि को बंजर कर दिया ?
क्यों स्वार्थ पूर्ति को धरती माँ का आँचल सूना कर दिया ?
अब भी समय है सम्हल जाओ ऐ मानव,
अपनी गलतियों को अब मत दोहराओ ऐ मानव,
करो इस पर्यावरण दिवस पर मिलकर वृक्षारोपण,
तभी धरती माँ मुस्कुरायेंगी फिर से खुश होकर।
— बिप्लव कुमार सिंह

बिप्लव कुमार सिंह

बेलडीहा, बांका, बिहार