गजल अहसासों की – पहली कडी
चांद की तरह वो अक्सर, बदल जाते हैं।
मतलब अली काम होते निकल जाते हैं॥
स्वाद रिश्तों का कडवा, कहीं हो जाय ना
छोटे मोटे से कंकड, यूं ही निगल जाते है
शौक तिललियों का हमने पाला ही नहीं
बस दुआ सलाम करके निकल जाते हैं
हौसले की पतवार हों, हाथों में जिनके।
तूफानों में भी वो लोग, संभल जाते है॥
वो बिछाते है जाल, दिलकश अदाओं से।
जानते है अच्छे अच्छे, फिसल जाते हैं॥
व्यापार चौराहों पर, बच्चों से ये सोचकर।
मासूमों से सख्तदिल भी, पिघल जाते हैं॥
बारिश की बूंदो मेंछिपी, बचपन की रवानी।
संग बच्चों के जवांदिल भी, मचल जाते हैं॥
शोर बर्तनों का सुनें, हमारे अडोसी पडोसी।
उससे पहले थोडा मकां से, टहल जाते हैं॥
सोच लो तुम पलाश, सच लिखने से पहले।
बडीं बेरहमी से लोग कलम, कुचल जाते हैं॥