मन के दर्पण
अधरों को अपने खोल ज़रा।
मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा।
चुप्पी ज्यादा बढ़ जाए न,
ज़िद्द के ताले जड़ जाएँ न,
जींवन छोटा पड़ जाए न,
तू खुद ही खुद को तोल ज़रा।
मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा।
दूजों से हँस कर मिलता है,
हर कहे पे उनके चलता है,
पर तुझे ज़हर ही मिलता है,
थोड़ा सा अमृत घोल ज़रा।
मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा।
दुनिया कहती है कहने दे,
न संग चले तो रहने दे,
बेफिक्र सा खुद को बहने दे,
अब आंक ले अपना मोल ज़रा।
मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा।