सामाजिक

कब तलक यूं आशा किरण बुझती रहेगी

हर दिन एक आशा की लौ जलाऐ रहते कि आज जो कोई भी घटना सुर्खियों मे रही हैं,ऐसी कोई भी अप्रिय घटनाएं कल ना होंगी परंतु ये क्या दुसरे दिन फिर सुर्खियों मे कोई ना कोई अप्रिय घटना की खबर सुन मन पीढ़ा से हर जाता है।कब तक ऐसी अप्रिय वारदातों से हमारे रोज़ के अखबार यूंही भरे रहेंगे?कहीं बलात्कारी व्दारा बलात्कार तो कहीं हत्या,लूट,चोरी,अज्ञात वाहनों की टक्करों से हुए भयावह हादसे मे इंसानों की मृत्यु या घरेलू हिंसाओं की सुर्खियां।उफ्फ्फ रोज़ निय नये सवेरे संग जलाई हुई आशा की लौ जैसे शिथिल सी अप्रकाशमयी सी प्रतीत होने लगती है।ऐसा लगता है कि इन घटनाओं के घने अंधेरे बादलों से हमें निज़ात कभी ना मिल पाऐगी।
आज जब एक हादसे के बारे मे पढ़ा तो खेद हुआ कि जो निर्भया कांड मे हुआ वो फिर से किसी ओर की बेटी संग दोहराया जा रहा है ये हवस के पुजारी निर्भया कांड के मुज़रिमों को मिली सजा से अभी तक कोई भी सिख नहीं ले पा रहे हैं।क्यों हवस के दानवों किसी की जिंदगी और उसकी इज्जत के दामन को तार-तार कर देते हो।मात्र कुछ पल की भूख मिटाने के लिये किसी को ताउम्र का दर्द देके मौत से भी बत्तर जिंदगी दे आखिर क्या मिलेगा तुम्हें?कुछ पल का सुकून उसके बाद पुनः किसी ओर शिकार की तलाश तुम्हारी भूखी हवस ढूंढ़ना शुरु कर देती है।
कल के अखबार मे पढ़ा जब एक नाबालिक लड़की अपने दोस्त संग विद्यालय से घर की ओर आ रही थी तो कुल दो नाबालिग लड़को संग मिल कुल नौ लोगों ने उस बच्ची की असम्त लूट कर उसे मरने के लिये वहीं छोड़ दिया।कितनी शर्मसार कर देने वाली ये घटना है जिसमें इंसान ये भी भूल जाता उस समय कि उसी की उम्र की एक बेटी अपने पिता का इंतजार घर मे कर रही है और पिता अपनी ही उम्र की एक पराऐ की बेटी के असम्त को ज़ार-ज़ार कर रहा है।सोचिये जब आपकी अपनी ही बच्ची को ये पता लगेगा की आपने क्या हरकत की है तो क्या वो कभी आपको माफ करेगी? क्या वो आप जैसे घटिया इंसान को अपना पिता कहेगी? बल्कि उसे ही हर पल आपसे एक डर सा प्रतित होगा कि कहीं उसी का पिता उसे ही अपनी हवस का शिकार ना बना ले। हमारे संस्कृति, संस्कारों, वेदों मे नारी के सम्मान को ही महान सम्मान बताया गया है।फिर भी औरतों के हाथ दिन प्रतिदिन हर तरह की हिंसाऐं बढ़ती ही जा रही है।औरतें जब की आज हर एक क्षेत्र मे लोहा मनवा रही हैं।फिर भी एक भय उनके दिलों मे इस प्रकार के हादसों को पढ़के बना ही रहता है।
कब,कहां,कैसे,किसकी बेटी हादसे या किसी की हवस का शिकार बन जाऐ ये कहा नहीं जा सकता है।मां बाप घर मे राह देखते रहते कि हमारी बेटी हमारा गर्व अभी बस आती ही होगी परंतु उन्हें क्या पता कि कोई नरभक्षी उनकी बेती को ताउम्र का दर्द दे रहा है।कोई लड़की तेज़ाब से जलाई जा रही तो कहीं किसी पे राह मे अश्लिल फितरे कसे जा रहे।बेटियां कितना भी खुद को बुलंद बना लें ऐसे हादसे सुन एक भय मन मे बन ही जाता हे हमारी बेटियों के दिलो मे।सोचिये आप खुद जरा सुकून से जो आप दूसरों की बेटी के साथ कर रहे वही यदि आपकी खुद की बेटी के साथ कोई ओर करे तो आपका खून सोच के ही खोल जाऐगा आप उस पापी को उसके पाप की सजा देने के लिये हमेशा फिराक मे रहेंगे तो क्यों दूसरों के घरों की बेटियों की इज्जत को यूं तार-तार करना।नारी अपनी हो या पराई,बेटी अपनी हो या पराई उसे सम्मान दें।उसकी जिंदगी मे सम्मान भरे रंगों को भरे ताकि आप आदमियों की छवि समाज मे बेहतरीन हर ओर छाऐ।कोई भी,किसी की भी बहू बेटी घर से एक भय के साये मे ना निकले वो भी स्वतंत्रता से जीना चाहती और आगे बढ़ना भी चाहती।देश की प्रगति मे जितना आदमियों का सहयोग और हक है उतना औरतों का भी।आशा की किरण संग कलम चला रही की कल फिर एक नया सवेरा मेरी आशाओं पे खरा उतरेगा।

— वीना आडवानी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित