गीत/नवगीत

इंसान भी रहना

बनना प्रेम की एक धुन, दया का गान भी रहना

इस जग में सहजता की सरल पहचान भी रहना
सफलता मिल जो जाए तो ये बातें भूल मत जाना
बनो अफसर चाहे हाकिम मगर इंसान भी रहना
न अपनी इस सरलता को , झटके में बदल देना
सदा ही सादगी के भाव और मंशा को बल देना
उडा़ना ना कभी उपहास किसी लाचार से मन का
कभी भी बनना न बंधक किसी संकीर्ण बंधन का
बसना हर किसी के दिल में सबकी जान भी रहना
बनो अफसर चाहे हाकिम मगर इंसान भी रहना
बनाए वर्षों के नाते को यूं बेकार मत करना
किसी से बदजुबानी या गलत व्यवहार मत करना
मिले अवसर तो उस करतार के चरणों में झुक जाना
जहां पर रुक जाए संस्कार वहीं पे खुद भी रूक जाना
बन जाओ कठिन जितने मगर आसान भी रहना
बनो अफसर चाहे हाकिम मगर इंसान भी रहना
बनो अफसर चाहे हाकिम मगर इंसान भी रहना

विक्रम कुमार

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