जब बच्चा पहली बार स्कूल जाता है तो माता- पिता उसे कुछ दिन तक स्कूल छोड़ने स्वयं जाते है । बच्चे को स्कूल गेट के अंदर जाते देखते ।वो रोता है और माता -पिता की आँखों में आँसू आ जाते है। किन्तु ख़ुशी भी होती है की बच्चा आज से स्कूल गया किन्तु एक फिक्र भी लगी होती है। कैसे बैठा होगा । स्कूल में इतनी देर तक। फिर ,समय पंख लगा कर उड़ता वो एक क्लास से दूसरी क्लास में पास होता जाता है । एक दिन आता है।कालेज जाने का जिसे की बाहर शहरों में जाकर ही पड़ना पढता है।और वही रहना भी ।माता -पिता अपने मन में झांके तो बच्चो से दूर रहने का दर्द जब बच्चा पहली बार स्कूल गया और अब कालेज जाता बच्चों से दूर रहने की टीस एक समान उठने लगती है आँखो में आंसू आते है । कुछ फ़िल्मी गीतों के भावो में इतना दम ख़म होता की दूर कही बज रहा या खुद के पास कोई गीत सुन रहे हो तो वो गीत में अपने बच्चे तुलनात्मक रूप आँखों की अश्रुधारा को बढ़ा देता है। यही क्रम हर घरों में चलता है जैसे फ़िल्मी गीत “मै कभी घबराता नहीं पर अंधेरों से डरता हूँ मै माँ। “से अपने बच्चो की कल्पना कर उन्हें याद करते है तो तब मालूम होता कि गीतों में कितना दम होता है । बच्चों से दूरी सभी के साथ होती है । भावनात्मक पक्ष बच्चो को जब मालूम होता है तो वे माता- पिता की चिता करने लग जाते है । बच्चो की नौकरी लगने और शादी होने के बाद बच्चा शहर की और रहने जाता है ।और माता -पिता फिर से अकेले रह जाते है फिर से ये दूरियां आँखों में आँसू ला देती है ।
— संजय वर्मा “दॄष्टि”