माई
कभी कुछ नहीं बोली, माई,
हरदम रही अबोली, माई!
सबके साथ वो हंसी मगर,
बंद कमरे में रो ली, माई!
नींद की ख़ातिर बच्चों की,
खुली आँख से सो ली, माई!
सारे शगुन समाऐं तुझमें,
कुमकुम, चंदन, रोली, माई।
पूजा घर में आरती जैसी,
आंगन डली रंगोली माई!
बाहर नीम, करेले सी है,
भीतर से पूरन पोली, माई!
सारे त्योहार रखे आंचल में,
ईद, दीवाली, होली, माई!
दर्द, खुशी और सुख, दुख में,
‘जय’ की है हमजोली, माई!
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’