गीतिका/ग़ज़ल

तेरे बगैर अब…. 

मन लगता बदहवास है तेरे बगैर अब, 

बुझी बुझी सी शाम  है तेरे बगैर  अब| 

खिड़की से ताकते रहे सुदूर चांद को,

चुभेगी   सारी रात तो    तेरे बगैर अब|

आँखें  कहाँ  बस में मेरी, वो मन की ही करें| 

करती रही बरसात वो,    तेरे   बगैर अब| 

गजरे की  वो लड़ी तो चुपचाप है पड़ी, 

उसे वेणी में लगाय कौन तेरे बगैर अब| 

फख्र  क्यों न करें हम की  हैं शहीद की बेवा, 

ग्रहण चक्र हमे करना पड़ा  तेरे बगैर अब| 

तस्वीर पर यह चक्र भानु सा है जँच  रहा, 

पर मांग सुनी रह गया तेरे बगैर अब| 

आया है तिरंगे में लिपट अपना देखो लाल, 

फिर सम्मान ग्रहण कर रहे तेरे बगैर अब|

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]