वीरत्व की परिभाषा
सत्य अहिंसा और धर्म, वीरों के जहां श्रृंगार रहे,
त्याग प्रेम और पतिव्रत, स्त्री जाति का मान रहे।
उस दिव्य धरातल का यशगान कहूं तो कहूं भी क्या,
जिस पुण्यभूमि को निखिल विश्व जय जय हिंदुस्तान कहे।
राम भरत केशव अर्जुन और कर्ण जैसे महादानी,
ध्रुव प्रहलाद लव कुश और कालिदास से महाज्ञानी।
भीष्म सरीखे पितामह जहां धर्मध्वजा ले खड़े हुए,
भरत जैसे बालक भी सिंहो के सम्मुख बड़े हुए।
गंगा यमुना जैसी नदियां जिसके अंचल में बहती हो,
सीता अनुसुइया सावित्री जिसके अंतस में रहती हो।
जिसके सम्मुख आकर देखो मेरु के शीश झुका करते,
उस पुण्य धरातल के आगे,आंधी तूफान रुका करते।
अखिल विश्व पूजी जाती, जौहर वाली महारानी
अरिदल का संहार करे, झांसी वाली बलिदानी।
अगस्त्य मुनि से महातेज सागर को ही पी जाते है,
रण भूमि में शौर्य दिखा रणवीर यहां जी जाते है।
कवियों में थे महाकवि कालीदास का मान सुनो,
इतिहासों में लिखा हुआ वेदव्यास का गान सुनो।
जैसे चक्र किए धारण पापो को हरते पीताम्बर,
वैसे ही ज्ञान के दीप जलाते रामधारी सिंह दिनकर।
कुम्भा जैसे वीर यहां वीरत्व लिए जीते रण को,
परमहंस से महामुनि जीत लिए अपने मन को।
ज्ञान पराक्रम और शौर्य की गंगा बहती जाती है,
वेदों उपनिषदों की वाणी अंतस में रम जाती है।
जहां विश्व को जगतपिता ने गीताजी का ज्ञान दिया,
बुद्धदेव ने आकर यहां प्राणिमात्र से प्यार किया।
कायरता को दूर किया, है पराक्रम की अभिलाषा,
यौद्धाओ ने बदल के रख दी वीरत्व की परिभाषा।।