ग़ज़ल
आधी साँसें, आधा तू है,
मुझमे थोड़ा ज़्यादा तू है।
आता क्यूँ है बहकावे में,
दिल मेरे क्या बच्चा तू है।
सुनता कब है मज़लूमों की,
गूंगा भी है, बहरा तू है।
तेरे आगे सस्ती दुनिया,
सबसे ज़्यादा मंहगा तू है।
कब आएगा पास बता दे,
वक्त कहाँ पे ठहरा तू है।
ख़िदमत न कर पाया माँ की,
सबसे बड़ा अभागा तू है।
तारे ढूंढ रहे हैं तुझको,
चाँद कहाँ पे उतरा तू है।
थाह नहीं मिलती ‘जय’ तेरी,
सागर से भी गहरा तू है।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’