कविता

जिस समय एक जवान वीरगति पाता है तब-

सरहद पर खूनी स्याही से, वीरों ने नाम लिखे होंगे
जल-हिम-माटी के कण-कण में, वीरों के नाम छिपे होंगे
धड़कन ने रिश्वत दी होगी, कुछ और समय संग रहने की
पर क़फ़न बँधे थे जिनके सिर, वे शीश कहाँ बिके होंगे?

जब लहू गिरा होगा भू पर, धरती भी झूम गयी होगी
सरहद पर रुक कर मंद पवन, होठों को चूम गयी होगी
हीरे-पन्ने-मोती- माणिक, कैसे मिलते हैं धरती पर?
चंदा-सूरज की आँखें भी, दर्शन को घूम गयी होंगी।

— शरद सुनेरी