कहानी

हम सिर्फ तेरे 

नंदिनी बहुत लापरवाह हो तुम।क्यों ऐसा करती हो? तुम लापरवाह हो या तुम्हारे घर वाले, मुझे कुछ समझ नहीं आता। 

देखो निखिल तुम मेरे घर वालों को तो कुछ बोलो ही मत, और तुम्हें जब इतनी चिंता थी तो, मैं तो डॉक्टर की पर्ची तुमको व्हाट्सएप्प की थी ना, और तुमको तो मेरा एड्रेस पता ही था। उसी एड्रेस पर दवा तुम भिजवा देते बड़ा। 

हाँ नंदिनी तुमने मुझे व्हाट्सएप किया था, पर मेरी कई सवालों पर तुम्हारी चुप्पी बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती है। कैसी चुप्पी निखिल? 

अच्छा ज़ब मैंने कहा अब तुम्हारे तन – मन पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार नहीं है मेरा भी है, बोलो तुम यह सवाल सही है या गलत। तो तुमने मेरे इस सवाल का जवाब न देकर कुछ दूसरी ही बातें शुरू कर दी थीं।नंदिनी यह कोई पहली दफा नहीं हुआ था। कई बार ऐसा हो चूका जब मैं तुमसे कुछ करीबी बात करता हूँ तो तुम बात को कहीं और ले जाती हो। 

जब हम व्हाट्सएप द्वारा चैटिंग करते  हमने कहा तुम्हें महसूस कर रहा हूँ, तो तुम शुभ रात्रि कहती हो। फिर बोल देती हो सो जाइए। 

जबकि मैंने तुम्हें कहा है कि मुझे रात के दो बजे तक जागने की आदत है, उससे पहले मुझे नींद नहीं आती। पता नहीं क्यों? यह आज से नहीं कई वर्षों से हैं।मैं कुछ और बोलूं तो तुम बातों का रुख बिल्कुल मोड़ देती हो। सारी बातें मैंने तुमसे बता दी है नंदिनी।

               पता नहीं उम्र के साठवें पायदान पर मेरे कदम पड़ रहे हैं और कोई इस उम्र में मेरी धड़कनों की डोर अपने हाथ में ले लेगा?मैंने यह सोच भी नहीं था। 

इस फेसबुक पटल पर ही तो जान पहचान हुई है तुमसे। कब तुम्हारी रचनाओं को पढ़ते पढ़ते तुमसे लगाव हो गया, मुझे कुछ पता नहीं। तुमने कब मुझे बांध लिया नंदिनी।अब मुझे सिर्फ तुम ही महसूस होती हो हर घड़ी। पर शायद कभी तुम मेरे पास आओ तो तुम्हें छूने की गुस्ताखी भी नहीं कर सकता मैं। लेकिन अब धीरे-धीरे मेरी भावनाएं दूसरा रूप लेती जा रही हैं।

मुझे पहले सिर्फ और सिर्फ सफेद रंग पसंद थे अब मेरी पसंद सफेद से इतर होने लगी। मेरी ख्वाहिशें मुझे अमर्यादित कर रही है। अब मुझे मन होता है तुम्हें जोर से गले से लगा लूँ और तुम्हें चुम लूँ।

तुम क्या सोचती हो यह मुझे पता नहीं। पर शायद तुम्हें प्यार करने लगा हूँ। इतनी ज्ञानवान सादगी की प्रतिमूर्ति शायद ऐसी ही किसी की चाह रही होगी मेरी। ना तुम्हारी रचनाएं पढ़ता और ना ही मेरे मन में इस तरह की भावनाएं जागृत होतीं।

मेरा प्यार तनिक भी शारीरिक नहीं है नंदिनी। एक तरफा ही है ना। मुझे नहीं मालूम नहीं निखिल।

 हाँ मैं जानता हूँ नंदिनी क्योंकि मैं जब तुमसे इस तरह की बात करता हूँ तो तुम सहज नहीं रह पाती। लगता है कि असहज हो जाती हो।

 सुनो ना नंदिनी यह प्यार तुम पर थोपना नहीं चाहता। लेकिन मैं काफी संवेदनशील हूँ,बस बिखरने मत देना मुझे। कम से कम मानसिक प्यार और नैतिक स्तर पर प्यार की उम्मीद करूँ तुमसे? 

बोलो नंदिनी करूँ ना?

 मैंने पूरा व्हाट्सएप भर दिया लिख लिख कर और तुम सिर्फ चुप हो, जवाब तो दो नंदिनी, तुम्हारी जवाब की प्रतीक्षा रहती है मुझे। 

नंदिनी मन ही मन सोचती रही क्या कहूँ  इन्हें अब इस उम्र में प्यार हुआ है, कह रहे हैं बिखरने मत देना, माँ के बाद अगर कोई स्त्री आई है तो वह सिर्फ तुम हो। उनके इस मान पर मुझे अभिमान है। लेकिन प्यार पता नहीं? शायद मेरे अंदर ऐसे भावनाएं अभी तक उठी नहीं है।

पर हाँ इतना तो तय है निखिल को बिखरने नहीं दूँगी। निखिल  तुमने जो अभी लिखा है कि अपनी माँ के बाद तुम सिर्फ मुझे प्यार करते हो इस पर मुझे बड़ा गुरूर हो रहा है। मानसिक और नैतिक स्तर पर मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ और साथ दे भी रही हूँ तुम्हारा।वरना रात्रि के डेढ़ बज रहे हैं और देखा जाए तो ये सही समय नहीं है किसी पर पुरुष से बात करने का । मैं अपने घर वालों से बचकर तुमसे चैटिंग कर रही हूँ।

                  मैंने भी शादी नहीं की लेकिन इतनी अंतरंगता की जरूरत महसूस नहीं हुयी नंदिनी खुद को ये कह रही थी। निखिल बस मुझे ये लगता है की मेरी किसी बातों से तुम्हें नाराजगी ना हो और तुम्हारे मन को ठेस न पहुंचे. तुम खुश रहो इसलिए आपके साथ हूँ ।ठीक है निखिल अब सोते हैं काफी रात हो गई है, रात क्या अब तो सुप्रभात कहना पड़ेगा निखिल। 

          अच्छा नंदिनी तुम मुझे कभी तुम कहती हो कभी आप कहती हो समझ नहीं पाता। थोड़ी देर और रुको ना थोड़ी देर और बात करो ना नंदिनी तुमसे गले मिलने का मन हो रहा है, और बस एक सिर्फ एक चुम्बन लेने दोगी, अरे अधर पर नहीं,तुम फिर असहज हो रही हो ना हमें दिख रहा है। निखिल प्लीज़ प्लीज़ तुम जो महसूस कर रहे हो उसे करो, किंतु बोलो मत। कुछ कहूंगी तो तुम फिर…. क्या नंदिनी क्या…… तुम। अब रहने दो।

अच्छा नंदिनी मेरी किताब छपने वाली है, और मेरी किताब में तुम होगी। उसके कुछ पन्नों पर तो सिर्फ तुम ही होगी। एक तरफा प्यार है मैं ऐसा ही लिखूंगा। बड़ा कष्टकारी होता है एक तरफा प्यार। 

              कितने बरस हो गए, तुम मेरी बात सुनती, हो पढ़ती हो, लेकिन कभी वह नहीं कहीं जो मेरे दोनों कान सुनना चाहती हैं । जानती हो नंदिनी सोचो,मान लो मैं मरणासन पर हूँ और मर भी जाऊं और तुम मेरी कानों में आकर कहोगी, वही जो मैं तुमसे कहता रहता हूँ तो यकीन मानो मेरे प्राण आ जाएंगे और तुम दूसरी सावित्री कहलाओगी।

      निखिल  हम प्यार  नहीं करते हैं यह दूसरी बात है, लेकिन तुम्हें तो प्यार का एहसास हुआ है ना तो उसे महसूस करके खुश तो रहो। क्यों बार-बार मरने की बात करते हो।और हमने कही है नैतिक और मानसिक स्तर पर साथ हूँ।

     नंदिनी पत्नी बना लिया हमने तुम्हें, मेरे तन मन धन की स्वामिनी हो तुम। अब तुम्हारे जितने भी खर्च होंगे, दैनिक खर्च, जरूरत के समान वह सब मेरी तरफ से। सात जन्मों तक देते रहूंगा ऐसा तो नहीं कर सकता लेकिन दो-तीन जन्म तुम्हें सब कुछ दे सकूँ इतना तो सक्षम हूँ हीं मैं। 

       ठीक है निखिल मुझे बहुत खुशी हुई, ऐसी बात है तो रुको मैं अपनी लिस्ट भेजती हूँ मेरी क्या-क्या जरूरते हैं । 

           सुनो ना नंदिनी मुझे सब पता है  बरसों से तुम्हें मैं जानता हूँ। कान का तो पहनती हो नहीं कुछ मेकअप तो करती हो नहीं आजकल की लड़कियों की तरह। पता नहीं किस जमाने की लड़की हो। वही सलवार कुर्ती और तीन मीटर का दुपट्टा। खैर इसी ने तो मेरी जान ले ली है। छोड़ो यह बातें करना निखिल तुम क्या मेरा लिस्ट जानते थे बताओ जरा। 

हाँ तो सुनो सबसे पहले तो मोटी आंखों वाली को मोटे-मोटे काजल की डिबिया चाहिए दूसरी लिपस्टिक भी लगाती हो मैंने देखा है। वैसे तुम्हारे होठों पर सिर्फ मेरे रँग ही जँचेंगे। ठीक है यह मेरे मन की बात है। 

निखिल ऐसी बातें मत करो यह चुंबन वाली बातें बिल्कुल मत करो, मुझे अच्छा नहीं लगता। दुखी ना हो जाओ और तुम बिखर न जाओ इसलिए मैं बोलती नहीं हूँ।तुम तो बड़ा पहले कहते थे कि कभी सामने आओ तो मैं तुम्हें देख भी ना सकूँ और अभी ये सब क्या हो रहा है? तुम कहते थे मानसिक स्तर पर और नैतिक स्तर पर प्यार करो। अब तुम बढ़ते जा रहे हो निखिल । 

अच्छा बाबा  नंदिनी क्षमा क्षमा चाहता हूँ क्षमा। लेकिन क्या करूँ नंदिनी मेरी भावनाएं अब मेरे बस में नहीं, अत्यंत प्रबल होती जा रही हैं। पता नहीं कभी निकट भविष्य में अगर तुम्हारे सामने आऊँ तो तुम्हें गले जरुर लगूँगा । उम्र साठ है तो क्या हुआ, सुनो ना गले तो लगने दोगी ना।

जानती हो नंदिनी मेरी माँ 92 वर्ष की है, और अगर मैं उन्हें बताऊं कि मैंने मन ही मन तुम्हें अपनी पत्नी बना लिया है, तो देखना वह शतक पार कर जाएगी।

           निखिल तुम जिस ओहदे पर हो, तुम्हारे एक हस्ताक्षर की इतनी वैल्यू है, संपादन का काम करते हो, कितने लोगों की रचनाओं की समीक्षा करते हो, उसमें स्त्रियाँ कई हैं।मैंने देखा है तुम्हारे लिस्ट में स्त्रियों की संख्या अति है। तो इतने को छोड़कर तुम्हें इतनी दूर दराज लड़की पसंद आ गई। 

    तुम्हारे इतने प्यार ने मुझे ऋणी बना दिया है। पत्नी का सुख तो शायद ही दे पाऊँ,लेकिन जीवन भर खड़ी रहूंगी तुम्हारे साथ। तुम्हारे नैतिक स्तर पर और मानसिक स्तर पर।नंदिनी यह भी बहुत है मेरे लिए। आओ ना नंदिनी! व्हाट्सएप पर ही बुला रहा हूं बाबा। 

अब निखिल कहीं भी जाते उन्हें हर वक्त नंदिनी के लिए ही समान दिखता,भैया जरा वह काजल की डिबिया दिखाना और वह जो साड़ी चुनरी प्रिंट साड़ी रखी है वह दिखाना। सर आपको किसके लिए चाहिए आप बताएं उसके अनुसार मैं आपको आपके पसंद का निकाल दूंगा। पत्नी के लिए चाहिए। सुनो मैं तुम्हें एक एक क्या बताऊं सोलह श्रृंगार के जितने भी समान है वह पैक कर देना। निखिल ने सब नंदिनी के लिए ले लिया। फिर निखिल ने नंदिनी को कॉल किया। नंदिनी तुम्हारे लिए आज कुछ खरीदा हूँ। बिल्कुल लाल बनारसी साड़ी चुनरी प्रिंट, लिपस्टिक वह मेरे अधर वाली वाली, सिंदूर भी।

निखिल तुमने कभी भी एफबी पर मेरी जितनी भी तस्वीर देखी है कभी देखी है मैंने साड़ी पहनी है।सूट कुर्ती और दुपट्टे। अच्छा ठीक है नंदिनी मैं तुम्हारे लिए सलवार कुर्ती दुपट्टे ही लूंगा। किस रंग के चाहिए तुम्हें। सभी रंग!मुझे जीवन में सभी रंग पसंद है। अच्छा नंदिनी सलवार कुर्ती दुपट्टे इसके अलावा भी शायद कुछ और होता है ना कुछ शायद कुछ। छी! कितनी गंदी बातें करते हो! कहते हैं मुझे कुछ पता नहीं महिलाओं के विषय में…और फिर यह सब छी सब तुम्हें पता है कि क्या-क्या समान होता है। 

नंदिनी ऐसी कौन सी गंदी बातें मैंने कह दी हमने तो नाम भी नहीं लिया। 

    ठीक है छोड़ो  चलो अब नंदिनी तुम आंखें बंद करो। निखिल तुम व्हाट्सएप पर हो,तुम्हें दिखेगा मेरी आंखें, बंद है या खुली है। नंदू पगली मुझसा प्यार करके देखो फिर सब कुछ दिखेगा संजय की भांति। ठीक है मुझे अब दिख गया तुमने अपनी आंखें तो बंद कर ली है,अब थोड़ा पास आओ। निखिल अब तुम रात में ना चैटिंग करना बंद करो। आपे में नहीं रहते हो। तो फिर तुमने आंखें क्यों बंद की अपनी नंदिनी। मैं तो दूर में हूं। नंदिनी मन ही मन सोची सच में वह इतनी दूर से चैटिंग कर रहा है तो फिर मैंने अपनी आंखें क्यों बंद कर ली।

       नंदिनी सुनो अब तुम अपने घर के आईने के पास जाओ। निखिल पागल हो गए हो तुम कहां हम कहां  तुम। यह क्या करवा रहे हो हमसे। कौन सा बंधन था जो नंदिनी को अपने बिस्तर से आईने की तरफ ले गया। नंदिनी ने अपने माथे को छुआ और नंदिनी को महसूस हुआ निखिल ने उसके मस्तक को चूमा है। फिर वह खुद को संभालते हुए निखिल को बोली हाँ देखा है ना कुछ नहीं था। 

            सच्ची नंदिनी कुछ नहीं था, तुम्हारे मस्तक पर मेरे अधरों छुवन नहीं थे क्या? तुमने सच में महसूस नहीं किया।

       नंदिनी कुछ कह नहीं पाई एक लंबी चुप्पी और खामोशी दोनों के बीच। 

       लेकिन कुछ तो था, एक अनाम बेहद करीब और दिल को मीठी-मीठी सुकून देने वाला रिश्ता। 

 देश के दो अलग राज्यों में रहने के बावजूद भी बिन फेरे हम तेरे वाली कहानी। 

नंदिनी ने कहा आ रहीं हूँ,और बड़बड़या ये कूरियर वाला भी ना कहते हुये दरवाजा खोला और कहा महाशय  जी ने उनकी पत्नी नंदिनी के लिए जरूरत के समान भेजे है।काजल सलवार कुर्ती लिपस्टिक दवाइयां और एक खूबसूरत साड़ी। मगर साड़ी क्यों?? तभी एक कागज़ पर लिखा था नंदिनी जो साड़ी नंदिनी है इसे निखिल की पुस्तक का लोकार्पण होने वाला है उसमें पहननी है। साथ ही निखिल ने नंदनी को बड़े प्यार से बुलाया था और साथ में वह साड़ी पहनकर आने को कहा था। 

       नंदिनी के कदम नियत समय और नियत तिथि पर उसी स्थान पहुँच गये।

     निखिल के लोकार्पण समारोह में मंच संचालन हो रहा था। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था। समीक्षक ने निखिल की पुस्तक की उस पन्नों को छुआ जो नंदिनी के लिए लिखी गई थी-भरी हुई, गेहूं  रंग, पीली साड़ी क्रीम हाई नेक ब्लाउज, मोटे काजल, होठ लाली और हंसती हुई एक महिला ने मुझ पर कब्जा कर लिया। जब वह समीक्षक इन पंक्तियों को पढ़ रहा था उसी वक्त नंदिनी हाल में प्रवेश की। 

              दोनों पहली बार एक दूसरे को देख रहे थे।व्हाट्सएप की सारी पंक्तियाँ दोनों के जेहन में उभर गयीं । लेकिन खामोशी और चुप्पी थी दोनों के बीच, किंतु अंतर्मन में शोर बहुत था। 

    फिर निखिल ने कहा एक विशिष्ट अतिथि हमारे बीच पहुँच चुकी है पुस्तक लोकार्पण के लिए। 

     कृपया मिस नंदिनी सिंह मंच पर आए। फिर निखिल ने इस पुस्तक को नंदनी को पकड़ाते हुए कहा आपकी पुस्तक आपको ही दे रहा हूँ,क्योंकि पुस्तक में नंदिनी ही तो थी। 

 बहुत भव्य तरीके से पुस्तक का लोकार्पण हुआ और निखिल ने नंदिनी को बहुत आदर और सम्मान के साथ सम्मानित किया।

अब पूरा हॉल खाली हो गया बस निखिल और नंदिनी ही हॉल में रह गए। निखिल ने दूर से ही नंदिनी से कहा कुछ याद आया नंदिनी। उम्र के इस पड़ाव में भी नंदिनी सोलह वर्षीय बाला की तरह शरमा गई।

वह बात याद आ गई की  कभी जगह मिले तो गले जरूर मिलूंगा और एक चुंबन।

 (आदरणीय धर्मवीर भारती जी का उपन्यास 

गुनाहों का देवता, बिल्कुल सच है।  

हर किसी के अंदर है छुपा गुनाहों का एक देवता 

हर किसी में बसता है एक चंदर  

हर किसी में छुपी  है एक सुधा…) 

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]