कविता

गुनाह छुप नहीं सकता 

किसी के लाख छुपाने से,
गुनाह छुप नहीं सकता।
चोर के मुँह से आदर्श की बातें ,
कभी अच्छा नहीं लगता।

बहरूपिया की बातों पर,
कभी कोई ध्यान नहीं देता।
जिसका कर्म है अच्छा,
उसी के कहे का प्रभाव है होता।

कभी ये चाँद सूरज भी,
अपना गुणगान खुद नहीं करता।
वो मुर्ख है इस धरती पर,
जो अपना बड़ाई आप है करता।

फूटा ढोल पीटने से,
कोई मधुर धुन नहीं निकलता।
जिसने खुद को ही न संवारा,
उसका कोई उपदेश नहीं सुनता।

जिसके मुँह में लगा हो कालिख,
खुद को बेदाग कहे, अच्छा नहीं लगता।
कभी जालिमों की मुख से,
अहिंसा पर चर्चा शोभा नहीं देता।

कितना अच्छा होता यदि इंसान,
खुद के किए पर हृदय टटोल रहा होता।
फिर न कभी हम भटकते,
न कोई और गुनाह के राह पर जाता।

— अमरेन्द्र

अमरेन्द्र कुमार

पता:-पचरुखिया, फतुहा, पटना, बिहार मो. :-9263582278