गीत/नवगीत

दर्द तिरंगे का

मैं तिरँगा तीन रंग का चौथे रंग में रंग जाता हूँ
लेकर लहू लाल रंग लाल की बलि चढ़ाता हूँ
कोख कलाई माथे की बिंदी सुनी होतें देखूं
मैं अभागा खून से सन खून के आँसू बहाता हूँ

पड़ा दफ्तर के कोने में अपना फर्ज निभाता हू
क्या खोया क्या पाया ये मैं हिसाब लगाता हूँ
इक दिन का भगत बन वो भक्ति ऐसे करते
उनकी भक्ति को देख मैं डर सहम सा जाता हूँ

छुपाकर निज स्वार्थ लोगों को लिप्त मैं पाता हूँ
लेकर जान वो कहते जान न्योछावर करता हूँ
चोरी बेईमानी गद्दारी जो वर्षों से देश में करते
वो ही कहते शान से फिर मैं तिरंगा फहराता हूँ

अपने मन की पीढ़ा अपने बेटों से कह पाता हूँ
दुश्मन घर में हैं बैठें ये देख देख मैं रह जाता हूँ
आसन लगा दीमक दीपक बन बैठे हैं कुर्सी पर
कहे वो कुर्सी के लिए मैं तिरंगा ध्वज झुकाता हूँ

माँ भारती का ध्वज भारत का गौरव कहलाता हूँ
मैं मन की पीढ़ा मन तोड़ तुमको यह बतलाता हूँ
रंग केशरिया श्वेत हरा नील अशोक चक्र लिए मैं
मैं अपने ही घर में क्यूँ गुलाम बनकर रह जाता हूँ

— सोमेश देवांगन

सोमेश देवांगन

गोपीबन्द पारा पंडरिया जिला-कबीरधाम (छ.ग.) मो.न.-8962593570