कविता

एकता का तूफान

बंद मतलब जब अस्तित्व की बात हो,
दोगलों की कुछ और खयालात हो,
तो समझिए हम कहां हैं,
या तो मूर्ख या सिर्फ जवां हैं,
एकता से दूर कौन रहता है,
स्वार्थी तो हमेशा मौन रहता है,
मत भूलो कि दौर अस्तित्व की लड़ाई का है,
जीते तो कौम की भलाई का है,
हक अधिकार की लड़ाई खातिर
खुलकर सड़कों पर आना पड़ता है,
मौजूदगी झुठलाने वालों को
झिंझोड़कर,झकझोड़कर जगाना पड़ता है,
लोकतांत्रिक व्यवस्था में
जोरदार भीड़ दिखाना पड़ता है,
सोने का नाटक कर रहे लोगों को
आंधी,तूफान ला जगाना पड़ता है,
हर पीड़ित यलगार का सिपाही होता है,
जो सब जानकर नजरअंदाज करे
वो समाज का दाग वाला स्याही होता है,
ऐ छले हुए लोगों वक्त रहते
अपना वजूद दिखा दो,
जिंदा हो तो जिंदा होने का
सबूत दिखा दो,
लड़ो कि लड़ना ही अब
अंतिम विकल्प रह गया,
संवैधानिक तरीकों से भिड़ो और
समंदर में हलचल मचा दो,
वो देखते रह जाये और तुम
एकता का भयानक तूफान ला दो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554