ग़ज़ल
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है
तुम्हारे नूर की ही रौशनी है
ये जाना जब खफा हैं और से तो
अब अटकी सांस भीतर जा रही है
भला बनने की कोशिश कीजिए मत
भलाई या बुराई कब छिपी है
जो बदले पैंतरा हर इक कदम पर
उसी का नाम प्यारे जिन्दगी है
कुरेदेंगे अधिक सहलाएंगे कम
अजीजों की यही चारागरी है
मिला जो वक्त वो उपयोग कर लो
खबर क्या है कि कब तक जिन्दगी है
— समीर द्विवेदी नितान्त