बहुसंख्यकों की बात को हिन्दुओं की आवाज बताना सुनियोजित साजिश
विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव द्वारा दिया गया संबोधन जज साहब के लिये गले की फांस बन गया है। दरअसल, 8 दिसंबर को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था। वायरल वीडियो में उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के कार्यान्वयन का समर्थन किया और कहा कि कानूनों को बहुसंख्यकों की प्राथमिकताओं के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने कहा,‘ये कहने में बिल्कुल गुरेज नहीं है कि ये हिंदुस्तान है। हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जस्टिस होकर ऐसा बोल रहे हैं। कानून तो भइया बहुसंख्यक से ही चलता है। परिवार में भी देखिए,समाज में भी देखिए, जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है। जज साहब के इस बयान पर सियासी हो-हल्ला हुआ यह तो समझ में आता है लेकिन बड़ी अदालत यदि ऐसे किसी बयान को हिन्दुओं से जोड़कर कोई कदम उठाये तो समझ से परे हैं। जज शेखर यादव ने गलत नहीं कहा था कि कानून बहुसंख्यकों की प्राथमिकताओं के अनुरूप होना चाहिए। यदि जज साहब गलत हैं तो फिर हमारा लोकतंत्र कैसे सही हो सकता है,यह लोकतंत्र ही है जिसके अनुसार जब देश प्रदेश से लेकर गांवों तक में चुनाव होता है तो बहुसंख्यकों के वोट हासिल करके ही सरकार बनती है, जिसमें सभी समाज और धर्म के मतदाता शामिल होते हैं।यहां तक की कोर्ट की बहु सदस्यीय बेंच जब किसी मामले पर फैसला सुनाती है तो भी यही होता है। इसको एक उदाहरण से भी समझा जा सकता है। नवंबर 2019 में अयोध्या में प्रभु श्री राम का मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने बहुमत से फैसला सुनाया था।इसी को बहुसंख्यक कहा जायेगा। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जज शेखर यादव को तलब कर लिया है। यह कॉलेजियम जिस न्यायाधीश के खिलाफ किसी विवादास्पद मुद्दे पर हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगती है तो उन्हें मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने बताया कि जस्टिस शेखर कुमार यादव को न्यायिक नीति की सीमा पार करने के आरोपों के खिलाफ अपना पक्ष रखने का मौका मिल सकता है।\
खैर, विवादों में घिरे जज शेखर यादव का साथ मिला है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो टूक कह दिया है कि जज साहब ने कुछ गलत नहीं बोला। हॉ योगी साहब ने अपनी बात कहते हुए राजनैतिक फायदे नुकसान का भी ध्यान रखा। इसी के सहारे योगी ने एक बार फिर हिंदुत्व यानि बहुसंख्यक समाज के मुद्दे पर कांग्रेस समेत विपक्ष को आईना दिखाया। उन्होंने हिंदू एकता, न्यायमूर्ति शेखर यादव और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष के रवैये पर तीखा हमला किया। सीएम ने खुले मंच से न्यायमूर्ति के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि बहुसंख्यक समाज को मजबूत करने की बात करने वालों को अब धमकी दी जा रही है। भारत की विरासत के संवर्धन की बात विपक्ष को इतनी खलती है कि वह महाभियोग ले आते हैं। सीएम ने जनता से सच को दबाने वाले, संविधान का गला घोंटने वाले ऐसे दलों के लोगों की मानसिकता को उजागर करने की अपील की। योगी ने पहले मुंबई और फिर लखनऊ के एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति और न्यायमूर्ति के मुद्दे पर खुले मंच से अपनी बात रखी है। सीएम ने कांग्रेस पर दोहरा चरित्र होने का आरोप लगाते हुए कहा कि जो लोग भारत का ठेका लेकर घूमते हैं और डिस्कवरी ऑफ इंडिया को भारत का सबसे प्राचीन ग्रंथ मानते हैं। वे संविधान के नाम पर पाखंड कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि श्री राम जन्मभूमि को लेकर फैसला देने वाले जजों को आज तक धमकी मिल रही है। ऐसे ही विपक्ष राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी आवाज को दबाना चाहते हैं। विपक्ष को यह बात खल रही है कि किसान का पुत्र इस पद पर कैसे पहुंच गया। एक न्यायमूर्ति अगर एक नागरिक के रूप में सच्चाई को रखते हैं तो महाभियोग लाकर उनकी आवाज दबाने का प्रयास किया जाता है।
योगी ने गलत नहीं कहा कि देश में हर हाल में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होना चाहिए। दुनिया में बहुसंख्यक समाज जो कहता है, व्यवस्था वैसे संचालित होती है। भारत की मंशा है कि अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक का भेद समाप्त हो और सब लोगों पर समान कानून लागू होना चाहिए लेकिन विपक्ष को यह बात अच्छी नहीं लग रही है। ये लोग संविधान का गला घोंटकर जबरन अपने दम पर देश की व्यवस्था चलाना चाहते हैं। दबंगई से सच को दबाने की कोशिश करने वालों को एक्सपोज किए जाने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री ने जज शेखर यादव के बयान के सहारे अपनी बात को सही साबित करने के लिये यह भी कहा कि संभल में 46 साल पहले जिनके(कांग्रेस)शासनकाल में जिस मंदिर को बंद कर दिया गया, वह मंदिर फिर से सबके सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि 46 वर्ष पहले जिन दरिंदों ने संभल के अंदर नरसंहार किया था, उन्हें आज तक सजा क्यों नहीं मिली। संभल में जिनकी निर्मम हत्या हुई, उन निर्दाेषों का क्या कसूर था। जो भी सच बोलेगा, उसे धमकी दी जाएगी, यह लोग उसका मुंह बंद कराने का प्रयास करते हैं।
जज शेखर यादव के ऊपर सबसे अधिक हमला टुकड़े-टुकड़े गैंग द्वारा किया जा रहा है,जो बहुसंख्यकों की आवाज को हिन्दुओं की आवाज बताने का प्रोपोगंडा करते हैं। वकील और कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स के संयोजक प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को एक चिट्ठी लिखी। उन्होंने सीजेआई से इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के आचरण की इन-हाउस जांच की मांग की। उन्होंने दावा किया कि जज ने न्यायिक नैतिकता और निष्पक्षता और पंथनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया।उधर, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को आठ दिसंबर को माकपा नेता वृंदा करात ने भी चिट्ठी लिखकर जस्टिस यादव के भाषण को उनकी शपथ का उल्लंघन बताया। उन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से कार्रवाई की मांग की। बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने हाई कोर्ट के न्यायाधीश के बयान की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज से अपने बयान वापस लेने और माफी मांगने के लिए कहा। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल भी जज शेखर यादव के बयान से आग बबूला हैं। कुल मिलाकर बहुसंख्यक का मतलब सिर्फ हिन्दू और अल्पसंख्यक का अर्थ सिर्फ मुसलमान होने तक नहीं सीमित किया जा सकता है। बहुसंख्यक शब्द व्यापक है। बहुसंख्यक आबादी यदि यह कहती है कि उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा मिले, देश में महंगाई , भ्रष्टाचार कम हो, सबको रहने के लिये छत और भोजन मिले तो इसे हिन्दुओं की बात नहीं कहा जायेगा, यह देश की बहुसंख्यक आबादी की आवाज होगी।
— संजय सक्सेना, लखनऊ