कविता : झाँसी की रानी
धर काली का रोंद्र रुप, अंग्रेजों का संहार किया ! मातृभूमि की रक्षा हेतु, दुर्गा का अवतार लिया ! !
Read Moreधर काली का रोंद्र रुप, अंग्रेजों का संहार किया ! मातृभूमि की रक्षा हेतु, दुर्गा का अवतार लिया ! !
Read Moreझुलसा चेहरा, धंसी आँखें, “एसिड विक्टिम”… है मेरी पहचान ! पलक बिछाये, था सुनहरा कल, अब शायद हूँ… कुछ दिन
Read Moreटूटे मर्यादा… दिन – रैना क्यों “रामा” अब तेरे देश में ! रिश्तों में धोखा… इंसा दे रहा आदमी के
Read Moreकर खुद को… नज़रों से ओझल क्या दिल से दूर हो जाओगे ? पाओगे जब… खुद को तन्हा, संग अपने
Read Moreनाजुक सा रिश्ता…. तेरा मेरा ————————– नाजुक सा रिश्ता, तेरा मेरा कसमों से परे, बंधनों से परे !! इक डोर
Read More“मेरी बिटिया “ घुटनों बल चलती, ठुमकती – थिरकती, कभी आँचल में छिपती, कभी कान्धे पर चढ़ती ! वो नन्ही
Read Moreभुला के वादे…भूला के कसमें लाए डोली… किसी और की सजना उतर के डोली, जब आँगन तेरे उसने पायल छनकाई
Read Moreसधे हुए हाथों से कुम्हार मिट्टी के दीए बनाए ! बिक जाएँ जब दीप सभी घर चुल्हा उसके जल जाए
Read Moreरौशनी के त्यौहार में हम दीपों की अवली जलाएँ ! कुछ खुशियाँ और मुस्कान चलो बुझे चेहरों को हम दे
Read Moreवर्ण पिरामिड है भूमि जननी चीर सीना अन्न जल दे बिन भेदभाव है ये पालनहार न कर दोहन स्वार्थी इंसा
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