कविता : यक्ष प्रश्न
गर वर्दी में भी होता दिल किस पर चलता “डंडा” ? ये यक्ष प्रश्न है ! अजब विडम्बना दागी करें
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Read Moreकुछ कही, कुछ अनकही सी बातें चाय की चुस्की और बीती यादें ! पुनः किस्से पुराने, दोहराती हैं तेरी यादें…
Read Moreप्रेम अथाह … छुपा दिल में ! दिखाना न आए … ये आदत है !! रिश्ता तुमसे … जुड़ा रूह
Read Moreदर्द सह लेते हैं, अश्क भी पी लेते हैं हम तो आज भी… तेरी यादों में जी लेते हैं ll
Read Moreमैं नारी हूँ चाहूं स्वतंत्र, उन्मुक्त गगन भरूँ हौसलों की ऊँची उड़न ! कोई अदृश्य खूँटी न बाँधे मुझे… कि
Read Moreअपनी परिधि में… सिमटते, सिकुड़ते ! कई बार चाहा… इसे तोड़ पाऊँ ! जिम्मेदारियों के बंधन, जो बाँधे हैं मुझको
Read Moreपत्तों की भाँति जब बिखरे विश्वास नम आँखें कहें… दर्द होता है !! अपना बना के जब करे कोई रुसवा
Read Moreजब भी मिलना चाहें… मूंद लेते हैं आँखें हर रोज़ ख्वाब में आएँ… ये ज़रुरी तो नहीँ !! अश्कों संग
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