कविता : पलायन
देख शहर की ऊँची अट्टालिकाएँ, मस्ती भरा आलीशान जीवन लिए आँखों में स्वप्न सुनहरे असंख्य करें शहरों को पलायन !
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Read Moreनवजीवन ******** आशंकित सी मैं… थी व्याकुल दर्द- वेदना से आकुल मिला चैन थमा सैलाब ! फिर… नवजीवन की गूंजी
Read Moreक्या है कोई राम ? ? ? ***************** कितनी अहिल्या जीती जागती बनीं शिला हुई भावशून्य ! उसी वजह से…
Read Moreपुरजोर से करे रुदन वो बन ठूँठ फैला रीती बाँहें कहे पुकार – बँद करो अत्याचार ! ताकि जन्मे… इस
Read Moreमौन बर्फ़ से सर्द, हो चुके हैं रिश्ते पिघलाए, सहलाए कौन शब्द हो चुके हैं अब बौने ” समझदार” रह
Read Moreअक्सर दिखते हैं… लाल बत्ती पर… तो कभी फुटपाथों पर ! कभी आँसू लिए … तो कभी आँसू पिए !
Read Moreकभी प्राण बन कभी बाण बन बींध हृदय को जाते हैं ! ये “शब्द” बहुत कुछ कह जाते हैं !
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