कविता : मर्यादा
क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े, दिन-रात यूँ ही… घुट -2 के जियूँ ! क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर, जहर
Read Moreक्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े, दिन-रात यूँ ही… घुट -2 के जियूँ ! क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर, जहर
Read Moreजिनको कभी थे… हम नज़रंदाज़ करते, बन धड़कन वो दिल में, समाने लगे हैं ! आजकल बेवजह… हम मुस्कुराने लगे
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