कविता : रुक्मिणी के मन की व्यथा
रुक्मिणी के मन की व्यथा ================ करते हो अपने मन की सदा कभी मेरे मन की भी कर लो ना
Read Moreरुक्मिणी के मन की व्यथा ================ करते हो अपने मन की सदा कभी मेरे मन की भी कर लो ना
Read More=========माँ ======== कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते – चढ़ते आज बहुत “बड़े” हैं हो गये !! बैठे माँ की निश्छल छाया
Read Moreसीता को जैसे वरा राम ने मेरे राम मुझे तुम वर लो ना ! लगा सिंदूर नाम का अपने खुशियों
Read Moreहमारी कदर भी, करेगा ये ज़माना ! वफादारी की आदत … ज़रा छूट जाने दो !! सिक्का उछाल, वो फैसला
Read Moreकर (हाथ) दमड़ी, कसौटी पर रिश्ते, अपना कौन? प्रश्नों से परे, विष फैलाए पैसा, ईमान बना ! अंजु गुप्ता
Read Moreमाथे बिंदिया, बँधी पग पायल, मुरीद पिया ! बजे घुँघरू, फिर सारी रतिया, ढला यौवन ! — अंजु गुप्ता
Read Moreहर बात में तुम, जज्बात में तुम ! मेरा दिन हो तुम, मेरी रात हो तुम ! बेनाम है तुमसे…
Read Moreओढ़ मुखौटा बन कठपुतली जीएं सारे इस रंगमंच में…. खुद को भुला नित नयी भूमिका निभायें सारे इस रंगमंच में….
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