कविता
मन्नत जो माँगी थी मैंने कुबूल हुई तुम्हें पाकर खुशियां बेहिसाब हुई अब कोई ख्वाब नहीं पलते पलको पे तू
Read Moreहमसे बिछड़कर गम उनका भी कम न होगा ये बात और है कि वो जताते नहीं ये हवाएं जरूर एहसास
Read Moreप्रेम में डूबी स्त्री खोल देती हैं एक-एक कर अपने मन में पसरे मौन की परतें को वह अपने भीतर
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