ग़ज़ल
शाम तनहा है और सहर तनहा, उम्र अपनी गई गुज़र तनहा छुप गए साये भी अँधेरों में, रात को हो
Read Moreदिल्ली में हुए शर्मनाक कांड पर दिल में उत्पन्न हुए आक्रोश से निकली कुछ पंक्तियाँ :- मानवता हो गई मरणासन्न,
Read Moreप्राण पंछी है विकल, असह्य मेरी वेदना मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना नीर नैनों में भरे मैं,समुद्र तट
Read Moreकाश तुम हो सकते, मेरे……….. ज़रा से, नहीं पूरे तो भी गम नहीं, बस………. ज़रा से, यूँ ही चलता रहता,
Read Moreइस मार्मिक चित्र पर कुछ पंक्तियाँ कहने का प्रयास किया है:- सजल नयनों से वृषभ कहें, स्वामी तुम क्यों मुख
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