लघुकथा- जिंदगी या मोबाइल
डॉ.सुमित्रा जी मरीजों को रोज़ मरते देखती थीं. मेडिकल कॉलेज के एचडीओ यूनिट की इंचार्ज थीं वो. पर, आज वह
Read Moreडॉ.सुमित्रा जी मरीजों को रोज़ मरते देखती थीं. मेडिकल कॉलेज के एचडीओ यूनिट की इंचार्ज थीं वो. पर, आज वह
Read Moreहम हैं सुविधा- भोगी मानव,क्यों हम पेड़ लगाएं?मुफ्त में दो या चंद रूपये में,कहाँ उन्हें हम उगाएँ? नहीं है भूमि,
Read Moreमैं मूर्तिकार,अपनी कृतियों मेंभावों को संजोता हूंँ lमिट्टी और रंगों के संगम सेनवकृति को जन्म मैं देता हूंँ lएक दिन
Read Moreसामने वह जोएक लाल कोठी दिखती हैउसका रंगनिरंतर गहराता जा रहा है। क्योंकि,उसके अंदर का आदमीदूसरों का खून चूसदीवारों के
Read Moreमेरी तुम्हारी है एक ही कहानी।बेजुबान परिंदे, बंद पिंजरे में।गुटुर- गूं ,गुटुर -गूं कर अपनी पीड़ा जताते हो । मैं
Read Moreदो खपची से बनी काँवरईंटें,भट्ठे से मैं ढोता हूंँ ।पत्नी भी मेरी ईंटें ढोती ,दो रोटी खाकर सोता हूँ।। मेरा
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