मुक्तक
अहंकार का बोझ जब, सिर पर चढने लगा, आदमी को आदमी तब, कीडे सा लगने लगा| ढोने लगा वह बोझ
Read Moreछप्पन ईंची सीने पर क्यों आरोप लगाते, कुछ बोलो, बोये थे पेड बबूल के, आम कहाँ से आयेंगे, कुछ बोलो?
Read Moreनजरें उठाकर चलना, जमाने को खल गया, सरे राह मुस्कराना, जमाने को खल गया। नूर ए फलक कहाती, जो लब
Read Moreमैं खामोश रहता हूँ, मगर गूँगा नही हूँ, अकेला रहता हूँ, मगर तन्हा नही हूँ। अथाह जल है समन्दर में
Read Moreइन्द्र्धनुष के रंगों जैसा, मुझको रंग दो, होली के रंगों को, सतरंगी कर दो। राग-द्वेष, बैर-भाव, नफ़रत जड़ से मिटाकर,
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