सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 12
सर्दी की वो धूप ! माँ! आज देखा जो तेरा कंगना, याद आ गया बचपन का अपना अंगन। चमकती धूप
Read Moreसर्दी की वो धूप ! माँ! आज देखा जो तेरा कंगना, याद आ गया बचपन का अपना अंगन। चमकती धूप
Read Moreआज उसने एक चित्र देखा. चित्र बहुत सामान्य-सा था. महज एक चाबियों का गुच्छा, जिसमें हर तरह की चाबियां थीं.
Read More(विश्व मुस्कान दिवस पर विशेष) मुस्कुराहट तो बस मुस्कुराहट है भले ही इस अदा में भी व्यक्तित्व की भिन्नता की
Read Moreझमाझम बारिश हो रही थी. हवा भी तेज-तेज चल रही थी. कबूतर के एक छोटे-से पंख से रसोईघर का गवाक्ष
Read More1.नन्ही पौध एक विशाल वृक्ष की मैं नन्ही-सी हूं इक पौध आज, कल मुझको बड़ा होना है, आओ, धीमे जल
Read More(आदरणीय लता दीदी के जन्मदिवस दिवस पर विशेष) 1.एक और नई उम्मीदों भरी सुबह आई है, सूरज के उजास को
Read More”प्रातःभ्रमण करके आ रहे हो?” उसने पूछा. ”जी हां, बचपन से ही आदत जो बनी हुई है! इसके बिना चैन
Read Moreदो गीत 1.लगता है मधुऋतु आई है जब हरी-हरी हो वसुंधरा, अंबर सज्ज्न-मन-सम निर्मल, जब बहे बयार बसंती जब, लगता
Read Moreयह तो हम सब जानते ही हैं, कि सम्मान पाकर हम बहुत खुश होते हैं और सम्मानित भी, लेकिन कुछ
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